Thursday, July 3, 2025
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देवशयनी एकादशी अर्थात श्री हरि के शयन का समय

 

Sanskar 8


डॉ.पवन शर्मा

आधुनिक युग में वैज्ञानिकों ने भी खोजा है कि कि चातुर्मास्य में (मुख्यत: वर्षा ऋतु में) विविध प्रकार के कीटाणु अर्थात सूक्ष्म रोग जंतु उत्पन्न हो जाते हैं, जल की बहुलता और सूर्य-तेज का भूमि पर अति अल्प प्राप्त होना ही इनका कारण है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि को शंखासुर दैत्य मारा गया। अत: उसी दिन से आरम्भ करके भगवान चार मास तक क्षीर समुद्र में शयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं।

हिंदू धर्म में एकादशी का व्रत महत्वपूर्ण स्थान रखता है। प्रत्येक वर्ष चौबीस एकादशियां होती हैं। जब अधिकमास या मलमास आता है तब इनकी संख्या बढ़कर 26 हो जाती है। आषाढ़ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को ही देवशयनी एकादशी कहा जाता है। कहीं-कहीं इस तिथि को ‘पद्मनाभा’ भी कहते हैं। सूर्य के मिथुन राशि में आने पर ये एकादशी आती है। इस वर्ष देवशयनी एकादशी का पर्व 17 जुलाई 2024, दिन बुधवार को मनाया जाएगा। इस दिन से देव यानी श्रीहरि विष्णु शयन करेंगे और सभी तरह के मांगलिक कार्य 4 माह के लिए बंद हो जाएंगे। देवशयनी एकादशी के दिन से ही जगत के पालनहार भगवान विष्णु का निद्राकाल शुरू हो जाता है, यानी इसी दिन से चतुर्मास की शुरुआत होती है। चतुर्मास शुरू होने के बाद से सारे शुभ और मांगलिक कार्यों पर रोक लग जाती है। इस दिन से भगवान श्री हरि विष्णु क्षीरसागर में शयन करते हैं और फिर लगभग चार माह बाद तुला राशि में सूर्य के जाने पर उन्हें उठाया जाता है। उस दिन को देवोत्थानी एकादशी कहा जाता है। इस बीच के अंतराल को ही चातुर्मास कहा गया है।

पुराणों में वर्णन आता है कि भगवान विष्णु इस दिन से चार मासपर्यन्त (चातुर्मास) पाताल में राजा बलि के द्वार पर निवास करके कार्तिक शुक्ल एकादशी को लौटते हैं। इसी प्रयोजन से इस दिन को ‘देवशयनी’ तथा कार्तिकशुक्ल एकादशी को प्रबोधिनी एकादशी कहते हैं। इस काल में यज्ञोपवीत संस्कार, विवाह, दीक्षाग्रहण, यज्ञ, गृहप्रवेश, गोदान, प्रतिष्ठा एवं जितने भी शुभ कर्म है, वे सभी त्याज्य होते हैं। भविष्य पुराण, पद्म पुराण तथा श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार हरिशयन को योगनिद्रा कहा गया है। संस्कृत में धार्मिक साहित्यानुसार हरि शब्द सूर्य, चन्द्रमा, वायु, विष्णु आदि अनेक अर्थों में प्रयुक्त है। हरिशयन का तात्पर्य इन चार माह में बादल और वर्षा के कारण सूर्य-चन्द्रमा का तेज क्षीण हो जाना उनके शयन का ही द्योतक होता है। इस समय में पित्त स्वरूप अग्नि की गति शांत हो जाने के कारण शरीरगत शक्ति क्षीण या सो जाती है।
आधुनिक युग में वैज्ञानिकों ने भी खोजा है कि कि चातुर्मास्य में (मुख्यत: वर्षा ऋतु में) विविध प्रकार के कीटाणु अर्थात सूक्ष्म रोग जंतु उत्पन्न हो जाते हैं, जल की बहुलता और सूर्य-तेज का भूमि पर अति अल्प प्राप्त होना ही इनका कारण है। धार्मिक शास्त्रों के अनुसार आषाढ़ शुक्ल पक्ष में एकादशी तिथि को शंखासुर दैत्य मारा गया। अत: उसी दिन से आरम्भ करके भगवान चार मास तक क्षीर समुद्र में शयन करते हैं और कार्तिक शुक्ल एकादशी को जागते हैं। पुराण के अनुसार यह भी कहा गया है कि भगवान हरि ने वामन रूप में दैत्य बलि के यज्ञ में तीन पग दान के रूप में मांगे। भगवान ने पहले पग में संपूर्ण पृथ्वी, आकाश और सभी दिशाओं को ढक लिया। अगले पग में सम्पूर्ण स्वर्ग लोक ले लिया। तीसरे पग में बलि ने अपने आप को समर्पित करते हुए सिर पर पग रखने को कहा। इस प्रकार के दान से भगवान ने प्रसन्न होकर पाताल लोक का अधिपति बना दिया और कहा वर मांगों। बलि ने वर मांगते हुए कहा कि भगवान आप मेरे महल में नित्य रहें। बलि के बंधन में बंधा देख उनकी भार्या लक्ष्मी ने बलि को भाई बना लिया और भगवान से बलि को वचन से मुक्त करने का अनुरोध किया। तब इसी दिन से भगवान विष्णु जी द्वारा वर का पालन करते हुए तीनों देवता 4-4 माह सुतल में निवास करते हैं। विष्णु देवशयनी एकादशी से देवउठानी एकादशी तक, शिवजी महाशिवरात्रि तक और ब्रह्मा जी शिवरात्रि से देवशयनी एकादशी तक निवास करते हैं।

देवशयनी एकादशी का महत्व

इस एकादशी को सौभाग्य की एकादशी के नाम से भी जाना जाता है। पद्म पुराण का दावा है कि इस दिन उपवास या उपवास करने से जानबूझकर या अनजाने में किए गए पापों से मुक्ति मिलती है। इस दिन पूरे मन और नियम से पूजा करने से महिलाओं की मोक्ष की प्राप्ति होती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार देवशयनी एकादशी का व्रत करने से सभी मनोकामनाएं पूर्ण होती हैं। शास्त्रों के अनुसार चातुर्मास में 16 संस्कारों का आदेश नहीं है। इस अवधि में पूजा, अनुष्ठान, घर या कार्यालय की मरम्मत, गृह प्रवेश, आॅटोमोबाइल खरीद और आभूषण की खरीद की जा सकती है। देवशयनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु की पूजा करने से हर संकट दूर हो जाते हैं और पापों का नाश हो जाता है। इसके साथ ही मोक्ष की प्राप्ति होती है। ब्रह्मवैवर्त पुराण के अनुसार, इस व्रत को करने से सभी मनोकामनाएं पूरी हो जाती है। यदि व्रती चातुर्मास का पालन विधिपूर्वक करे तो महाफल प्राप्त होता है।


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