- पांचवें दिन भी धरना जारी, हाइवे पर मानव शृंखला बनाकर किया विरोध प्रदर्शन
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: एनएच-58 स्थित डाबका गांव के सामने किसान व व्यापारियों का एमडीए के खिलाफ पांचवें दिन भी धरना जारी रहा। इस बार किसान आर-पार के मूड में हैं। किसानों ने सोमवार को मीटिंग की, जिसमें हाइवे पर मानव शृंखला बनाकर विरोध प्रदर्शन किया। उधर, भाकियू के राष्टÑीय प्रवक्ता राकेश टिकैत भी किसानों के पक्ष में कूद सकते हैं।
किसानों का एक प्रतिनिधि मंडल राकेश टिकैत से मिलेगा, ये भी निर्णय लिया गया। किसान इस मुद्दे को लेकर टकराव के मूड में हैं, ये आंदोलन लंबा भी खींच सकता हैं। क्योंकि इसको लेकर व्यापक स्तर पर इसका प्रचार कर पश्चिमी यूपी के तमाम किसान नेताओं से समर्थन भी मांगा जा रहा हैं।
सोमवार को भारतीय किसान यूनियन अराजनीतिक ने किसानों और व्यापारियों के इस धरने को समर्थन देने का ऐलान किया। धरने का नेतृत्व कर रहे दीपक पंवार व बलराम ने कहा कि वो मेडा द्वारा जो उत्पीड़न किसानों का किया जा रहा है। वह किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। अपनी जमीन बचाने के लिए हम जान भी दे देंगे।
भट्ठा पारसोल में भी यहीं हुआ था। लगता है प्रशासन मेरठ में भट्ठा पारसोल की पुनरावृत्ति कराना चाहता हैं। इसके लिए किसान तैयार हैं। भारतीय किसान यूनियन अराजनीतिक के प्रदेश सचिव विनोद जिटोली ने कहा कि किसानों व व्यापारियों का उत्पीड़न किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाएगा। हमारा संगठन किसानों का व्यापारियों के साथ कंधे से कंधा मिलाकर खड़ा है।
दोपहर में मेडा के खिलाफ किसानों ने एक किलोमीटर लंबी मानव श्रंखला बनाकर विरोध जताया। मानव श्रंखला में किसानों व व्यापारियों की भीड़ जुटी। इस दौरान किसानों ने मेडा अफसरों के खिलाफ खूब नारेबाजी भी की तथा ऐलान किया कि किसानों और मेडा अफसरों के बीच आर-पार की लड़ाई लड़ने के लिए किसान तैयार हैं। आंदोलित किसानों ने कहा कि मानव श्रंखला एक अंगडाई है, आगे बड़ी लड़ाई हैं। इस तरह से किसानों ने अनशन आरंभ करने का भी ऐलान कर दिया।
अनशन पर किसान मरने के लिए तैयार हैं, लेकिन पीछे नहीं हटेंगे, ऐसा ऐलान भी आंदोलित किसानों ने मंच से किया। मीटिंग में किसानों ने कहा कि उनकी सुनवाई नहीं हो रही है, जिसके चलते अनशन पर बैठने का निर्णय किया गया हैं। ये अनशन बेमियादी चलेगा। अनशन पर किसी किसान की मौत होती है तो उसके लिए प्रशासन और मेडा के अफसर पूरी तरह से जिम्मेदार होंगे। ये आंदोलन भट्ठा पारसोल की तरह से तूल पकड़ रहा हैं। इसकी रिपोर्ट एलआईयू ने भी अफसरों को भेजी हैं। क्योंकि विपक्षी दलों के नेता भी इस आंदोलन में कूद सकते हैं।