- धक्का लगाने को मजबूर यात्री, कल पुर्जों की कमी के कारण नहीं हो रहा मेंटेंनेंस
- आए दिन यात्रियों को बसों में लगाने पड़ रहे धक्के
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: उत्तर प्रदेश परिवाहन निगम की बसों का हाल बेहाल है। यहां जेएनएनआरयूएम की बसों में यात्रियों के द्वारा धक्का लगाते दिखना आम बात हो गई है। भीषण गर्मी में मेरठ डिपो की बसें बिना शीशे के सड़कों पर दौड़ती दिखाई दे रही हैं। रोडवेज किराया लेने में कोई कसर नहीं छोड़ रहा, लेकिन सुविधाएं देने के नाम पर जीरो साबित हो रहा है।
पब्लिक ट्रांसपोर्ट यूपी की आम जनता के जीवन में बहुत अधिक महत्व रखता है। विशेषकर निजी यात्री वाहन जहां अधिक पैसे लेते हैं। वही रोडवेज बस से कम पैसों में ही यात्रियों को उनके ठिकानों पर छोड़ देती है पर आज कई रूट पर रोडवेज बसों की कमी से हालत खराब है। प्रदेश की बात करें तो करीब तीन हजार बसें चलन से बाहर हैं। इनमें मेरठ क्षेत्र की भी कई बसें शामिल हैं।
इन बसों के साधारण कलपुर्जों की सर्विस ना होने की वजह से खड़ी होकर धूल खा रही है। ऐसा नहीं है कि इन सभी बसों को फिर से ठीक करने में भारी भरकम पैसा खर्चा करना है। चलन से बाहर हुई बसों में साधारण समस्याएं हैं। जैसे किसी में टायर नहीं है, तो किसी में बैटरी नहीं है। कुछ बसों में तो इतने मामूली कलपुर्जों की सर्विस कमी है जिस को कुछ समय में ही ठीक करके यात्रियों के लिए फिर से शुरू किया जा सकता है।
मेरठ की बात की जाए तो बसों की कमी की वजह से मेरठ से दिल्ली, बिजनौर, नजीबाबाद, हरिद्वार, देहरादून रूट पर खटारा बसों के कारण यात्री परेशान है। पिछले दिनों पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने यात्रियों द्वारा रोडवेज बस को धक्का लगाते हुए एक तस्वीर पोस्ट की थी। उन्होंने अपने ट्वीटर पर लिखा था कि यूपी रोडवेज की बसों का खस्ता हाल भी उप्र की भाजपा सरकार जैसा है जो तथाकथित ‘डबल इंजन’ की सरकार होते हुए भी विकास के मार्ग पर चल नहीं पा रही है।
अखिलेश ने बसों को धक्का लगाने वाले यात्रियों को लेकर तंज कसा था। सपा अध्यक्ष ने कहा था कि धक्का लगाने वाले यात्री कह रहे हैं किधक्का लगाने के नाम पर महंगी टिकटों में थोड़ा डिस्काउंट तो मिलना चाहिए। अगर बात करें मेरठ डिपो की तो यहां बीते साल से अभी तक कोई नई बस नहीं मिली है, जिसकी वजह से मेरठ डिपो को पुरानी बसों के सहारे डिपो को चलाना पड़ रहा है।
साथ ही इन बसों के मेंटिनेंस के लिए संसाधन भी नहीं हैं। जिसकी वजह से बसें जैसे-तैसे सड़कों पर दौड़ रही हैं। लंबे रूट पर कमाई की उम्मीद में खटारा बसों को भेज दिया जा रहा है। रोडवेज डिपो की खटारा बसों में यात्री यात्रा करने को मजबूर हैं।
सवारियों से भरी रोडवेज की बसें विभिन्न रूटों पर बीच रास्ते खड़ी हो रही है। खराब होने का मुख्य कारण बसें पुरानी होना है। कोई बस कब और कहां खराब हो जाए कुछ पता नहीं। रोडवेज विभाग के कर्मचारी भी क्या करें बसें इतनी पुरानी हो गई उनको चलाना मुश्किल भरा हो रहा है।
ये हैं मानक
रोडवेज बसों की बॉडी पर डेंट पेट सही होना चाहिए,बसों के टायरों की स्थिति नई होनी चाहिए, रिमोल्ड नही होना चाहिए। बस का विंड स्क्रीन क्षतिग्रस्त नही होना चाहिए, साफ सुथरा हो। बस में फर्स्ट एड बॉक्स, अग्निशमन यंत्र, सीट बेल्ट होनी चाहिए। बस में फॉग बल्ब, खिड़कियों पर रेलिंग, यलो टेप लगी होनी चाहिए। बस में आगे पीछे के इंडिकेटर चालू हालत में होने चाहिए।
आपातकालीन गेट की हालत दुरुस्त होनी चाहिए। बस के पिछले शीशे पर रेलिंग या जाल ना लगा हो। मुसाफिरों के पकड़ने के लिए सपोर्ट रॉड मजबूत होनी चाहिए। सभी सामान्य बसों की तरह रोडवेज बसों का भी हर साल फिटनेस होता है, लेकिन इन बसों की संख्या कम और शेडयूल होने के कारण फिटनेस के लिए रोकी नही जाती है। केवल कमी दूर कराने का रिमांइडर जारी कर दिया जाता है।