Friday, April 26, 2024
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स्वाद के मायाजाल में बच्चे

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BALWANI


बच्चे तो वैसा ही भोजन खाते हैं, जैसा उनके संरक्षक उन्हें खिलाना चाहते हैं। आज बच्चे फास्टफूड के आदी हो गए हैं। साथ ही समय बेसमय खाने के भी। न चबाकर खाते हैं, खाते समय मोबाइल और टीवी देखते हैं, जिससे वे बचपन में ही बहुत सारी बीमारियों से घिर जाते हैं। उनके संरक्षक धन और समय बर्बाद करते हैं। पढ़ाई पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

संसार में अधिकांश बच्चे और बड़े अपने स्वाद के वशीभूत होकर अपना स्वास्थ्य बिगाड़ रहे हैं। स्वस्थ तन में स्वस्थ मन रहता है। यदि हमारा तन स्वस्थ है तो हम प्रत्येक कार्य को कुशलता पूर्वक करके जीवन को सफल बना सकते हैं लेकिन होता यह है कि हम स्वाद के मायाजाल में फंसकर जीवन को संकट में डाल देते हैं।

अनेकानेक बच्चे और बड़ों को मैं देख रहा हूं कि वे जीभ के स्वाद में प्रकृति के प्रतिकूल चलकर गंभीर बीमारियों का शिकार होकर अस्पताल और डाक्टरों के चक्कर लगाकर अपना धन और समय बर्बाद करते रहते हैं। उन्हें देखकर मुझे सहानुभूति होती है कि आखिर वे किस तरह मानव जीवन को नरक बना लेते हैं।

एक तरफ जीभ का स्वाद, दूसरी ओर भोजन को भी न चबाकर खाते हैं और न ही भोजन को नियम और प्रकृति के अनुकूल खाते हैं। साथ ही साथ अपनी दिनचर्या को भी प्रकृति के प्रतिकूल बनाकर जीवन में दुख और संकटों से घिरे रहते हैं।

आयुर्वेद कहता है कि जो मनुष्य प्रकृति के अनुकूल होकर अपने जीवन को ढाल लेते हैं, वे हमेशा स्वस्थ और प्रसन्न रहकर सकारात्मक ऊर्जा से भरे रहते हैं। साथ ही अपने जीवन में सफल होकर मानव जीवन को सार्थक कर लेते हैं, जिसके लिए ईश्वर ने हमें भेजा है।

साथ ही आयुर्वेद यह कहता है कि हम भोजन को ईश्वर का प्रसाद मानकर ग्रहण करें, अर्थात ईश्वर का धन्यवाद करके ही ग्रहण करें, क्योंकि अनेकानेक लोग आज भी इस धरा पर भूखे रह जाते हैं। भोजन को चबाकर ही खाएं। एक ग्रास को कम से कम 32 बार। भोजन के बाद या बीच में ठंडा पानी पीना वर्जित है।

यदि पीना ही पड़े तो गुनगुना जल ही पीना चाहिए क्योंकि ठंडा पानी आमाशय की अग्नि को बुझा देता है। भोजन के पाचन में अवरोध उत्पन्न होता है जिससे भोजन बहुत समय तक आमाशय में पड़ा रहता है, जिससे मनुष्यों का पेट और वेट बढ़ जाता है। पेट और वेट बढ़ना ही अनेकानेक रोगों को निमंत्रण हैं।

आयुर्वेद कहता है कि हम मौसम की हर सब्जी और फल आदि खाएं, जैसा भी हमारा बजट हो लेकिन खाने अवश्य चाहिए क्योंकि ईश्वर ने उनमें शरीर को मजबूत बनाने और प्रतिरोधात्मक शक्ति बढ़ाने के लिए पोषक तत्वों को सम्मिलित किया है लेकिन हम स्वाद के वशीभूत होकर मौसम की सभी सब्जियां, फल और दालें आदि नहीं खाते हैं और न ही अपने बच्चों को खिलाने के लिए प्रेरित करते हैं।

बच्चे तो वैसा ही भोजन खाते हैं, जैसा उनके संरक्षक उन्हें खिलाना चाहते हैं। आज बच्चे फास्टफूड के आदी हो गए हैं। साथ ही समय बेसमय खाने के भी। न चबाकर खाते हैं, खाते समय मोबाइल और टीवी देखते हैं, जिससे वे बचपन में ही बहुत सारी बीमारियों से घिर जाते हैं। उनके संरक्षक धन और समय बर्बाद करते हैं। शिक्षा और पढ़ाई पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

स्वस्थ रहने के लिए रात्रि को दांत और जीभ को साफ करके अवश्य सोना चाहिए। ऐसा करने से हम बहुत सारे रोगों से बचे रह सकते हैं। रात्रि को जल्दी सोना चाहिए और प्रात: काल में जगकर सबसे पहले गुनगुना जल दो चार गिलास जल अवश्य पीना चाहिए।

ऐसा करने से हमारे आमाशय, छोटी आंत ( जो कि लगभग 23 – 24 फीट होती है), किडनी और बड़ी आंत की सफाई अच्छे से हो जाती है जिससे हमेशा हमारा तन और मन स्वस्थ रहता है। हम स्वस्थ रहने के लिए योग और सैर भी कर सकते हैं। पढ़ाई आदि कर सकते हैं और भी आवश्यक कार्य कर सकते हैं। स्वादिष्ट और ताजा चीजों को अवश्य खाइए लेकिन जीभ के स्वाद के वशीभूत बीमारियों को आमंत्रित न करें। मनुष्य जीवन अमूल्य है।

इसे स्वास्थ रखने के लिए स्वाद के मायाजाल में न फँसें और न अपने बच्चों को फँसाईए। बच्चे आपकी धरोहर हैं। उनका पूरा ध्यान रखें। भोजन के समय मोबाइल और टीवी से बचाएं। क्योंकि ऐसा करने से पाचन शक्ति के हार्मोन्स मोबाइल और टीवी में स्थानांतरित हो जाते हैं। शरीर अस्वस्थ हो जाता है।

‘शरीरमाद्यं खलु धर्म साधनम’ अर्थात शरीर ही सारे कर्तव्यों को पूरा करने का एकमात्र साधन है। इसलिए शरीर को स्वस्थ रखना बेहद आवश्यक है क्योंकि सारे कर्तव्य और कार्यों की सिद्धि इसी शरीर के माध्यम से ही होनी है। अत: इस अनमोल शरीर की रक्षा करना और उसे निरोगी रखना मनुष्य का सर्वप्रथम कर्तव्य है। ‘पहला सुख निरोगी काया’ यह स्वस्थ रहने का मूल-मंत्र है।

डा. राकेश चक्र


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