वर्ष 2023 के लिए हाल ही में अर्थशास्त्र का नोबेल मेमोरियल पुरस्कार, क्लाउडिया गोल्डिन को प्रदान किया गया, जिन्होंने न केवल महिलाओं के श्रम बाजार के परिणामों को समझने में उनके उल्लेखनीय योगदान को महत्व दिया, बल्कि श्रमबल में लैंगिक समानता के लिए वैश्विक संघर्ष पर भी प्रकाश डाला। हालांकि क्लाउडिया गोल्डिन का कार्य मुख्य रूप से संयुक्त राज्य अमेरिका पर केंद्रित है, फिर भी वह भारत सहित दुनिया भर के अन्य देशों के लिए भी महत्व रखता है, जहां श्रमबल में लैंगिक असमानता एक महत्वपूर्ण चिंता बनी हुई है।
क्लाउडिया गोल्डिन का अभूतपूर्व शोध ऐसी अंतर्दृष्टि प्रदान करता है, जो भारतीय महिलाओं की श्रम भागीदारी और वेतन के अंतर के संदर्भ में गहराई से प्रतिबिंबित हो सकती है। यह शोध श्रम शक्ति में महिलाओं की भागीदारी के गैर रेखीय ऐतिहासिक परिपेक्ष्य पर प्रकाश डालता है, जो भारत के आर्थिक इतिहास से भी मेल खाता है। भारतीय महिलाओं को सामाजिक आर्थिक बदलावों के कारण श्रमबल भागीदारी में समान उतार-चढ़ाव का सामना करना पड़ा है। कई उच्च आय वर्ग वाले देशों में पुरुषों से आगे निकलकर महिलाओं की शिक्षा में वृद्धि गोल्डिन के शोध का एक महत्वपूर्ण पहलू है। भारत में महिलाओं ने शिक्षा के क्षेत्र में महत्वपूर्ण प्रगति की है। पिछले कुछ दशकों में उच्च शिक्षा में महिला नामांकन में उल्लेखनीय वृद्धि हुई है। अत: भारतीय महिलाओं के लिए रोजगार के अवसरों और आर्थिक सशक्तिकरण को नया आकार देने की आवश्यकता है।
गोल्डिन का शोध वेतन में लिंग असमानता को भी रेखांकित करता है, जो पहले बच्चे के आने के साथ उल्लेखनीय रूप से बढ़ता है। इसकी वैश्विक प्रासंगिकता होने के साथ ही यह भारतीय महिलाओं के लिए भी एक कटु सत्य है जिन्हें अक्सर करियर में रुकावटों और वेतन असमानताओं का सामना करना पड़ता है, क्योंकि वह नौकरी के साथ-साथ पारिवारिक जिम्मेदारियां को भी संतुलित करती हैं। हालांकि भारत ने हाल ही के वर्षों में महिलाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने में सराहनीय प्रगति की है। लेकिन महत्वपूर्ण लैंगिक अंतर अभी भी बना हुआ है। अंतर्राष्ट्रीय श्रम संगठन के एक अध्ययन में कहा गया है कि भारत में महिलाओं की श्रमबल में भागीदारी दर वैश्विक औसत से भी कम है। उत्पादक आयु वर्ग (15-5 9) वर्ष के लिए महिला श्रम शक्ति भागीदारी दर 2011-12 से 2021-22 के बीच 13.9 प्रतिशत घट गई और 33.1 प्रतिशत से घटकर 19.2 प्रतिशत हो गई। विश्व आर्थिक मंच के ग्लोबल जेंडर गैप इंडेक्स 2022 में 146 देशों में भारत 135वें स्थान पर है। आर्थिक भागीदारी और अवसर के मामले में रैंक विशेष रूप से दयनीय था और भारत 143वें स्थान पर था यह खराब प्रदर्शन काफी हद तक कार्य बल में भारतीय महिलाओं की बहुत कम भागीदारी के कारण था। विश्व के अधिकांश विकासशील देशों की तुलना में भारत की स्थिति बहुत खराब है जिसका कहीं ना कहीं कारण भारत का एक पितृ सत्तात्मक समाज है और भारत के सामाजिक मानदंड ऐसे हैं कि महिलाओं से परिवार की देखभाल और बच्चों की देखभाल की जिम्मेदारी लेने की अपेक्षा की जाती है। यह रूढ़िवादिता महिलाओं की श्रम शक्ति की भागीदारी में एक महत्वपूर्ण बाधा है।
जो दर्शाता है कि विभिन्न सामाजिक-सांस्कृतिक कारकों की वजह से महिलाओं का एक बड़ा भाग शिक्षा, उच्च शिक्षा तथा श्रमबल से बाहर रहता है। इसके साथ ही भारत लैंगिक वेतन असमानताओं की समस्या से भी जूझ रहा है जिसका कारण कहीं न कहीं व्यावसायिक अलगाव या महिलाओं के लिए कार्य- परिवार संतुलन की चुनौती है। श्रमबल में महिलाओं की भागीदारी का निर्णय और उनकी समर्थकता उन विभिन्न आर्थिक व सामाजिक कारकों पर निर्भर होता है, जो पारिवारिक स्तर और स्थूल-स्तर (मैक्रो लेवल) पर जटिल रूप से सामने आते हैं। वैश्विक शाक्ष्यों से पता चलता है कि इसमें शैक्षणिक योग्यता, प्रजनन दर व विवाह की आयु, आर्थिक विकास/ चक्रीय प्रभाव और शहरीकरण जैसे घटक सर्वाधिक महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। इन विषयों के साथ ही सार्वजनिक क्षेत्र में महिलाओं की भूमिका को निर्धारित करने वाले सामाजिक मानदंडों का भी प्रभाव पड़ता है।
क्लाउडिया गोल्डन का शोध भारत में महिलाओं की शिक्षा में सुधार, श्रमबल गतिशीलता और कार्य बल में लैंगिक समानता की तत्काल आवश्यकता को प्रतिबिंबित करता है। भारत सरकार, नीति निर्माताओं और समाज को गोल्डिन के शोध से प्रेरणा लेनी चाहिए और एक ऐसा माहौल बनाने के लिए सहयोगात्मक रूप से काम करना चाहिए जो महिलाओं की आकांक्षाओं का समर्थन करता हो, परिवार के अनुकूल नीतियों की पेशकश करता हो और समान काम के लिए समान वेतन को बढ़ावा देता हो। इन तथ्यों पर विचार करते हुए भारत और इस संपूर्ण भूभाग के नीति निमार्ता को महिलाओं के लिए श्रम बाजार परिणाम में सुधार हेतु एक वृहद दृष्टिकोण अपनाने की आवश्यकता है। इसके लिए शैक्षणिक व प्रशिक्षण कार्यक्रमों की पहुंच, एवं उपयुक्तता, कौशल विकास, शिशु देखभाल की व्यवस्था, मातृत्व सुरक्षा और सुगम व सुरक्षित परिवहन के साथ-साथ ऐसे विकास प्रारूप को प्रोत्साहन देने की आवश्यकता है जो रोजगार अवसरों का सृजन करें।
मानक श्रम बाल भागीदारी डर की प्राप्ति के लक्ष्य से आगे बढ़ते हुए नीति निर्माता को यह देखना चाहिए कि बेहतर रोजगार तक पहुंच अथवा बेहतर स्वरोजगार तक महिलाओं की पहुंच हो रही है या नहीं और देश के विकास के साथ उभरते नए श्रम बाजार अवसरों का लाभ वह उठा पा रही है या नहीं। महिलाओं की भागीदारी को प्रोत्साहित कर इन्हें सक्षम बनाने वाले नीतिगत ढांचे का निर्माण किया जाना चाहिए जहां महिलाओं के समक्ष आने वाली लैंगिक बढ़ाओ के प्रति सक्रिय जागरूकता मौजूद हो। इस क्रम में लैंगिक असमानता दूर करने वाली प्रभावी नीतियों को विकसित किए जाने की आवश्यकता है। अटैक लक्ष्य केवल यह नहीं है कि महिला श्रम बाल भागीदारी में वृद्धि हो बल्कि उन्हें उपयुक्त कार्य के लिए उपयुक्त अवसर प्रदान हो, समान वेतन मिले जो महिलाओं के आर्थिक सशक्तिकरण में योगदान करेगा।
क्लाउडिया गोल्डिन को दिया गया नोबेल पुरस्कार केवल उनके उत्कृष्ट योगदान को ही नहीं बल्कि विश्व भर में व्याप्त श्रमबल में लैंगिक असमानताओं को दूर करने के लिए कार्यवाही का आह्वाहन करता है। उनका शोध एक ऐसा दिया प्रज्वलित करता है जो एक ऐसे भविष्य की राह को रोशन करता है, जहां भारतीय महिलाएं दुनिया भर की महिलाओं की तरह ऐतिहासिक बाधाओं और पूर्वाग्रहों से मुक्त होकर कार्य बल में आर्थिक स्वतंत्रता और समानता हासिल कर सकती हैं।