- हिंदी विषय पर आयोजित की गई दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग एवं उत्तर प्रदेश भाषा सस्थान लखनऊ द्वारा गुरुवार को दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। जिसका विषय था विज्ञान, समाज विज्ञान और मीडिया में हिंदी का आयोजन। संगोष्ठी के प्रथम दिन उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता प्रो. वाई विमला वरिष्ठ आचार्य वनस्पति विज्ञान विभाग ने की। मुख्य अतिथि के रूप में डा. राजनारायण शुक्ल कार्यकारी अध्यक्ष उत्तर प्रदेश भाषा संस्थान लखनऊ मौजूद रहें।
अपने संबोधन में प्रो. वाई विमला ने कहा कि हिंदी भाषा को साहित्य में केवल या तक सीमित रखा है। हिंदी भाषा को समृद्ध बनाने के लिए साहित्य महत्वपूर्ण माध्यम है। किसी भाषा को थोपा नहीं जा सकता, बल्कि प्रचार-प्रसार के माध्यम से ही जन सामान्य तक पहुचाया जा सकता है। किसी साहित्य एवं भाषा के मर्म को समझे तभी वह जनमानस की भाषा बनेगी।
हमने अनेक विदेशी शब्द अपनी भाषा में जोड़ लिये कोई भी शब्द क्लिष्ट नहीं है। प्रो. राजनारायण शुक्ल ने कहा कि हिंदी दिवस केवल हिंदी विभाग में ही क्यों मनाया जाएगा। न्याय की भाषा हिंदी व मातृभाषा में न होना विडम्बना है। हिंदी प्रारम्भ से ही दुष्चक्रों में फंसी रही है। 1857 से अंग्रेजी दमन चक्र के कारण हिंदी पत्रकारिता और साहित्य भी डरा रहा परन्तु बाद में स्वाधीनता आंदोलन हिंदी में ही चला।
स्वास्थ्य के क्षेत्र की भाषा भी अंग्रेजी ही है, आधुनिक शल्य विज्ञान हिंदी में ऐलोपैथिक की पुस्तक है। हिंदी पूरे देश की संपर्क भाष है। अत: वह राष्ट्र भाषा बन सकती है। हम तमिल, तेलुगु पढ़ना नहीं चाहते, यह गलत है। हमें अपने देश की अन्य भाषाओं को भी पढ़ना चाहिए। इससे राष्ट्रीय एकता बनेगी। मॉरीशस में हिंदी की स्थिति कमजोर होती जा रही है। मॉरीशस में नई भाषा क्रियोल बढ़ रही है।
इस गुलामी की मानसिकता से बाहर आये। हमारे पास मनोबल की कमी है। कबीर, तुलसी ने अपनी रचनाएं लोक भाषाओं में रची हैं। ग्रामीण बच्चों में मेधा की कमी नहीं है परन्तु वे भाषाई दुष्चक्र में फंस जाते हैं। इस भाषाई दुष्चक्र को तोड़ना होगा। अजय सिंह ने कहा कि अंग्रेजी का प्रभाव जनमानस पर देखने को मिलता है। किसी अन्य भाषा में सीखना अवास्तविक है। अभिजात्य के फेर में फंसकर हम भावों की गहराई नहीं समझ सकते हैं।
अंग्रेजी में जवाहर लाल नेहरू की पुस्तक डिस्कवरी आॅफ इण्डिया का उदाहरण देते हुए बताया कि अंग्रेजी में मूल भावों का लेखन नहीं होता। शरद जोशी के व्यंग्य जो हिंदी में हैं वे अद्भुत हैं। जापान और चीन में भी अपनी भाषा को ही बढ़ावा दिया जा रहा है। जबकि भारत में एक समस्या है कि अपनी भाषा पर विचार कम हो रहा है। संकायाध्यक्ष कला एवं अध्यक्ष हिंदी विभाग प्रो. नवीन चन्द्र लोहनी ने उद्घाटन सत्र के अंत में सभी अतिथियों को स्मृति चिह्न भेंट किए। संगोष्ठी सचिव डा. अंजू ने सत्र के समापन पर सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन किया। संचालन डा. ललिता यादव ने किया