- बेसमेंट में चल रहे कारोबार, एमडीए के सर्वे में खुली पोल, क्या एमडीए करेगा कार्रवाई?
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: मेरठ विकास प्राधिकरण ने हाल ही में पार्किंग को लेकर शहर भर में सर्वे कराया। सर्वे की रिपोर्ट चौका देने वाली है। प्राधिकरण से जो मानचित्र स्वीकृत है, उसमें पार्किंग बेसमेंट में दर्शायी गई है या फिर अन्यंत्र, लेकिन धरातल पर कहीं भी पार्किंग नहीं है। बेसमेंट में कारोबार चल रहे हैं। हालात बेहद विकट है। प्राधिकरण अधिकारी भी मानते हैं कि पार्किंग की व्यवस्था नियमों का पालन नहीं करने पर बिगड़ रही है।
प्राधिकरण के अधिकारी नियमों का पाठ पढ़ाने के लिए पूरा दोषा रोपण व्यापारियों पर कर रहे हैं, लेकिन बड़ा सवाल यह है कि जिस समय प्राधिकरण के इंजीनियरों ने पार्किंग के साथ मानचित्र स्वीकृत किया, उसी दौरान बेसमेंट में पार्किंग देने की बजाय अन्यंत्र पार्किंग दी होती तो शायद पार्किंग को लेकर अब सवाल खड़े नहीं होते।
जब वर्तमान में पार्किंग का मामला आरटीआई एक्टिविस्ट लोकेश खुराना ने हाई कोर्ट में याचिका दायर कर उठा दिया है, तब प्राधिकरण की नींद टूटी। अब हाईकोर्ट की फटकार के बाद ही प्राधिकरण और नगर निगम के अधिकारी सड़कों पर पार्किंग का सर्वे कर रहे हैं। नगर निगम सड़कों से अतिक्रमण हटा रहा है। अब महत्वपूर्ण बात यह है कि प्राधिकरण ने जो सर्वे किया है, उसमें करीब एक सौ शोरूम ऐसे हैं, जिनके पास पार्किंग ही नहीं है।
पार्किंग बेसमेंट में छोड़ी गई थी, लेकिन वहां भी कारोबार चल रहा है। इस तरह से प्राधिकरण को भी धोखे में रखकर मानचित्र स्वीकृत कराया गया। अब इस पर प्राधिकरण के इंजीनियर और अधिकारी क्या कानून का चाबुक चलाएंगे? अब यह देखना बाकी है। …जो बड़े-बड़े शोरूम है, उनके पास पार्किंग नहीं है। क्या उनको ध्वस्तीकरण किया जाएगा। यह बड़ा सवाल है। प्राधिकरण अधिकारियों की भी यह चुनौतीपूर्ण परीक्षा है।
क्योंकि शहर भर में पार्किंग को लेकर जाम लगा रहता है। सड़कों पर वाहन पार्क कर दिए जाते हैं, जिसके चलते जाम की समस्या बड़ा नासूर बन गई है । सड़कों से वाहन बाहर कैसे हटे? यह तभी संभव हो सकता है, जब बड़े शोरूम को वाहनों की पार्किंग की व्यवस्था करने के लिए कहा जाए? प्राधिकरण इंजीनियरों के सर्वे में यह बात भी सामने आई है कि अवासीय भू उपयोग में व्यावसायिक कॉम्प्लेक्स बने हुए हैं।
यह कॉम्प्लेक्स कैसे बन गए? यह भी बड़ा सवाल है। क्योंकि इनके पास नहीं तो पार्किंग है। नहीं इनका व्यवसायिक उपयोग है। फिर आवासीय में व्यवसायिक कॉम्प्लेक्स कैसे बन गए? यह सब प्राधिकरण के अधिकारियों और इंजीनियरों की भूमिका पर सवाल खड़े कर रही है। ये हो सकता है जिन अधिकारियों व इंजीनियरों के कार्यकाल में ये कॉम्प्लेक्स बनाये गए थे, वो अब नहीं है, लेकिन उनकी जांच कराई जा सकती है।
उनकी वेतन से वसूली की जा सकती है। इस दिशा में भी एमडीए के अधिकारियों को कदम उठाने होंगे। अब इसमें जो सर्वे रिपोर्ट आई है, इसमें प्राधिकरण के अधिकारी और इंजीनियर कितनी इमानदारी से धरातल पर काम करते हैं, यह देखना बाकी है। क्योंकि पार्किंग नहीं है। फिर भी बड़े- बड़े शोरूम चल रहे हैं। उनको लेकर प्राधिकरण अधिकारियों की क्या रणनीति होगी? क्या बड़े-बड़े शोरूम मेरठ विकास प्राधिकरण के अधिकारी बंद करा पाएंगे या फिर उनकी पार्किंग की व्यवस्था की जाएगी।