Monday, March 17, 2025
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कूटनीतिक कौशल से हो समाधान

Samvad 52


DR NK SOMANIअरब देश कतर द्वारा भारत के 8 पूर्व नौसैनिकों को सजा-ए-मौत के फैसले से पूरा देश स्तबध है। सभी सैन्य अधिकारी कतर की राजधानी दोहा में ग्लोबल टेक्नालॉजी एंड कंसल्टेंसी नाम की निजी कंपनी में काम करते थे। यह कंपनी कतर की सेना को ट्रेनिग और टेक्निकल कंसल्टेंसी सर्विस प्रोवाइड कराती है। ओमान एयरफोर्स के रिटायर्ड स्क्वॉड्रन लीडर खमिस अल अजमी इसके प्रमुख है। कतर की इंटेलिजेंस के स्टेट सिक्योरिटी ब्यूरों ने इनको 30 अगस्त, 2022 को गिरफ्तार किया था। कतर का आरोप है कि भारत के पूर्व सैन्य अधिकारी कतर के हाइटेक सबमरीन प्रोगाम की गोपनीय जानकारी इस्राइल को दे रहे थे। इस मामले में कंपनी के मालिक को भी गिरफ्तार किया गया था जिसे बाद में रिहा कर दिया गया। दोहा में भारतीय दूतावास को करीब एक माह बाद सिंतबर के मध्य में पहली बार इनकी गिरफ्तारी के बारे में बताया गया। इसी साल मार्च में लीगल एक्शन शुरू हुआ। गिरफ्तार अधिकारियों ने कई बार जमानत याचिकाएं लगाई लेकिन जमानत नहीं मिली। अब पिछले गुरूवार को अचानक इनको दोषी मानते हुए मृत्यु दंड की सजा का ऐलान कर दिया गया। भारतीय दूतावास के अधिकारियों के संपर्क के बाद जिस तरह से इन अधिकारियों को काउंसलर एक्सेस (परिजनों से बात करने की सुविधा) प्रदान की तो ऐसा लग रहा था कि कतर इस मामले में नरम रूख अपना रहा है। लेकिन अब यकायक मौत की सजा का ऐलान कर भारत को सकते में डाल दिया। कतर सरकार ने आरोपों को सार्वजनिक नहीं किया है। न ही परिवारजनों को आरोपों की कोई औपचारिक जानकारी दी गई है। ऐसे में कतर की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं। कतर का दावा है कि उसके पास पर्याप्त सबूत है। जिन्हें इलेक्ट्रॉनिक डिवाइस के जरिए प्राप्त किया गया है। लेकिन सवाल यह है कि अगर कतर के पास गिरफ्तार भारतीय अधिकारियों के खिलाफ कोई सबूत है, तो वह उसे भारत सरकार के साथ साझा क्यों नहीं कर रहा है। अगर वास्तव में कतर सरकार के पास कोई सबूत है, तो वह इन सबूतों को विश्व समुदाय के सामने रखकर अपने खिलाफ बन रहे परसेप्शन को क्यों नहीं रोक रहा है। कहीं ऐसा तो नहीं कि हमास पर भारत के रूख से क्षुब्ध होकर कतर ने यह फैंसला लिया हो। कहा तो यह भी जा रहा है कि भारत के पूर्व नौसैनिक अधिकारियों की फांसी का ऐलान कर कतर भारत के साथ सौदे-बाजी के मनसुबे पाल रहा है। कतर की ओर से पूरे मामले में जिस तरह से भारत सरकार को अंधरे में रखकर हीलाहवाली की गई उससे भी सजा के फैसले पर सवाल खड़े हो रहे है।

हालांकि, भारत के विदेश मंत्रालय ने कहा है कि उसे फेसले के विस्तृत ब्योरे का इंतजार हैं। और वह सभी कानूनी रास्ते तलाश रहा है। विदेश मंत्रालय ने इस मुद्दे को कतर के अधिकारियों के सामने उठाने व गिरफ्तार अधिकारियों को काउंसलर एक्सेस मिलते रहने की बात भी कही है। लेकिन अहम सवाल यह है कि भारत इस मामले में क्या कर सकता है। हालांकि, गिरफ्तार अधिकारियों को छुड़ाने के लिए भारत के पास अभी बहुत सारे कानूनी और कूटनीतिक विकल्प है, लेकिन सवाल यही है कि भारत कतर पर दबाव बना पाने में कितना सफल होता है। कतर सरकार ने चाहे भारत के पूर्व सैन्य अधिकारियों के लिए मृत्यु दंड की सजा का ऐलान कर दिया हो लेकिन सजा को लागू करना उसके लिए आसान नहीं है। भारत के पास कई विकल्प है। प्रथम, नीचली अदालत के फैसले को भारत के राजनयिकों द्वारा वहां की ऊपरी अदालत मे चुनौती दी जा सकती हैं। राष्ट्रद्रोह के कई मामलों में कतर की सर्वोच अदालत ने मौत की सजा को आजीवन कारावास में बदला है। साल 2014 में फिलिपींस के एक नागरिक को भी इसी तरह से मौत की सजा सुनाई गई थी। फिलिपींस सरकार द्वारा कतर की सर्वोच अदालत में अपील किए जाने पर अदालत ने मौत की सजा को आजीवपन कारावास में बदल दिया था।

द्वितीय, कतर की अदालत के इस फैंसले को भारत इंटरनेशन कोर्ट आॅफ जस्टिस (आईसीजे) में चैलेंज कर सकता है। कुलभुषण जाधव के मामले में भी भारत ने पाकिस्तान की अदालत के निर्णय के विरूद्ध आईसीजे में गुहार लगाई थी। कोर्ट ने जाधव की सजा पर रोक लगा दी थी। तृतीय, व्यापार संबंधों के जरिए भी भारत कतर को झुकने के लिए मजबूर कर सकता है। 2021-22 में दोनों देशों के बीच 15.03 बिलियन डॉलर का व्यापार हुआ। भारत को स्पेशल करोबारी दोस्त के तौर पर ट्रीट करने वाला कतर भारत को 13.19 बिलियन डॉलर का निर्यात करता है। जबकि कतर भारत से महज 1.83 बिलियन डॉलर का आयात करता है। कारोबारी पलड़ा कतर के पक्ष में झुका हुआ है। इसके अलावा भारत अपनी कुल आवश्यकता की 90 फीसदी गैस कतर से आयात करता है। दूसरी ओर खाद्य आपूर्ति के मामले में कतर काफी हद तक भारत पर निर्भर करता है। लिहाज भारत कतर पर दबाव बना सकता है। चर्तुथ, पूरे मामले को भारत कूटनीति के जरिए भी हल कर सकता है। कतर के साथ भारत के अच्छे संबंध है। साल 2017 में जब गल्फ कॉपरेशन काउंसिल ने कतर पर आतंकवाद के समर्थन का आरोप लगाकर काउंसिल से बाहर कर दिया था उस वक्त भारत ने बिना किसी शर्त कतर को अनाज भेजा था। मिडिल ईस्ट के कई देशों से भरत के संबंध अच्छे है। भारत इनके जरिए भी कतर पर दबाव बना सकता है। पंचम, कतर की कुल 25 लाख की आबादी में से 6.5 लाख भारतीय है। 6000 से ज्यादा छोटी-बड़ी भारतीय कंपनियां कतर में कारोबार कर रही है। कतर के विकास और उसकी इकॉनमी में भारतीयों का बड़ी भूमिका है। ऐसे में भारत कतर के साथ रिश्तों का उपयोग कर सकता है। व्यक्तिगत तौर कतर के अमीर के साथ हमारे प्रधानमंत्री के अच्छे संबंध हैं। जरूरत पड़ने पर प्रधानमंत्री भी इस मामले में हस्तक्षेप कर सकते हैं।

जहां तक कतर-भारत संबंधों का सवाल है तो वर्ष 1973 में दोनों देशों के बीच राजनयिक संबंधों की शुरुआत हुई। दोहा में भारत का दूतावास है। जबकि कतर का नई दिल्ली में दूतावास और मुंबई में वाणिज्य दूतावास है। मार्च 2015 में कतर के अमीर तमीम बिन हमद अल थानी भारत यात्रा पर आए थे। इसके बाद जून 2016 में प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी कतर गए थे। राजनयिक दृष्टि से दोनों देशों के संबंध हमेशा से मधुर रहे हैं, ऐसा भी नहीं है। जाकिर नायिक व भाजपा प्रवक्ता नूपुर शर्मा के मामले में दोनों देशों के रिश्तों में कड़वाहट घूलती हुई दिखाई दी थी। कुल मिलाकर कतर के साथ हमारे रिश्ते अच्छे ही हैं। ऐसे में भारत को कानूनी दांव पेंच से अधिक कूटनीतिक कोशल से समाधान का मार्ग तलाशना चाहिए।


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