Friday, March 24, 2023
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श्रीराम का जन्म ऋषियों की देन, असुरों के नाश के लिए पैदा हुए श्रीराम

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  • रामायण कांन्क्लेव में श्रीराम के जीवन को बताया असुरों के नाश के लिए जरूरी
  • इंडोनेशिया की संसद में अगस्त ऋषि का चित्र लगा है हमारे देश की संसद में नहीं

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में आयोजित रामायण कांन्क्लेव में भगवान श्रीराम के जीवन से जुड़े विभिन्न प्रकरणों के बारे में बताया गया। इस दौरान विभिन्न स्कूलों के छात्र-छात्राओं नें श्रीराम के किरदार की प्रस्तुति करते हुए रामराज्य पर अपने विचार रखे। साथ ही उप्र सरकार के भाषा मंत्रालय के सांसद ने श्रीराम के जन्म को ऋषि-मुनियों की देन बताया। इस दौरान इंडोनेशिया की संसद में ऋषि अगस्त का चित्र लगा होने जबकि हमारे देश की संसद में नहीं होने की भी बात कही गई।

रामायण कांन्क्लेव में भगवान श्रीराम के जीवन से जुड़ी कई महत्वपूर्ण बातों का उल्लेख किया गया। मुख्य अतिथि सांसद यूपी सरकार अरविंद ओझा ने राम कथा के बारे में कहा यह भगवान शिव के मुख से निकली है। इसमें किसी की जीवनी को गाथा कहा गया है जो हनुमान के इष्ट श्रीराम की कथा है। राम कथा को इसलिए लिखा गया, जिससे हर कोई इसे अपने जीवन में शामिल कर सके। राम का चरित्र हमारे लिए एक पैमाना है।

अपने जीवन में धर्म, अर्थ, काम व मोक्ष को सुधारने के लिए भगवान राम के जीवन से प्रेरणा लेनी चाहिए। अरविंद ओझा ने कहा भगवान श्रीराम का जन्म ऋषियों की मर्जी से हुआ, उनके द्वारा ही राम को सुंदर रूप दिया गया था। इसके पीछे वजह यह थी कि राम का जन्म असुरों के नाश के लिए ही हुआ था। राम के जन्म के बाद ऋषि विश्वामित्र दशरथ के पास राम को मांगने गए लेकिन दशरथ ने यह कहते हुए मना कर दिया कि वह उनकी बुढ़ापे की संतान है। इसी समय गुरू वशिष्ठ ने दशरथ से राम को विश्वामित्र को सौंपने के लिए कहा।

इसके बाद विश्वामित्र राम को अपने साथ ले गए और उन्हें शस्त्र विद्या सिखाई। इसके साथ ही वन में रहने के लिए भी सभी जानकारियां दी। उसके बाद ही श्रीराम ने वनवास के दौरान असुरों का नाश किया। कार्यक्रम में मुख्य वक्ता के रूप में शामिल होने पहुंचे मेरठ कॉलेज के प्राचार्य डा. वाचिस्पति मिश्रा ने अपने संबोधन में कहा आज भी इंडोनेशिया की संसद में ऋषि अगस्त का चित्र लगा है, जबकि हमारे देश की संसद में नहीं। कार्यक्रम में क्षेत्रीय पर्यटन अधिकारी अंजू चौधरी ने सांसद अरविंद ओझा व मुख्य वक्ता डा. वाचिस्पति को सम्मानित किया।

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