साहित्यिक पत्रिकाओं का प्रकाशन हर दौर में चुनौतीपूर्ण कार्य रहा है। इस दौर में तो यह और भी चुनौतीपूर्ण हो गया है। यह सुखद है कि इन चुनौतियों को स्वीकार कर देश के अनेक छोटे शहरों से कई स्तरीय साहित्यिक पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है। इन साहित्यिक पत्रिकाओं में उत्तर प्रदेश के छोटे से शहर सहारनपुर से प्रकाशित होने वाली पत्रिका ‘शीतल वाणी’ ने देश के लब्ध प्रतिष्ठ विद्वानों और साहित्य प्रेमियों का ध्यान अपनी ओर खींचा है।
यह ‘शीतल वाणी’ के संपादक वीरेद्र आजम के जुनून और हिम्मत का ही नतीजा है कि आज इस पत्रिका ने पूरे देश में अपनी अलग पहचान बनाई है। पिछले कुछ वर्षों में अनेक बड़ी साहित्यिक पत्रिकाएं बंद हुई हैं। ऐसे माहौल में ‘शीतल वाणी’जैसी पत्रिकाओं ने आशा की किरण जगाई है। ‘शीतल वाणी’ ने न केवल उदीयमान साहित्यकारों को प्रोत्साहित किया है, बल्कि वरिष्ठ साहित्यकारों को भी एक मंच प्रदान किया है।
अनेक लब्ध प्रतिष्ठ साहित्यकारों पर विशेषांक निकाल कर ‘शीतल वाणी’ के संपादक वीरेंद्र आजम ने यह साबित कर दिया है कि अगर साहित्य के प्रति सच्ची प्रतिबद्धता और लगन हो तो विभिन्न तरह की चुनौतियों के बीच भी सफलतापूर्वक स्तरीय साहित्यिक पत्रिका का प्रकाशन किया जा सकता है।
जब मैं ‘शीतल वाणी’ के संपादक वीरेंद्र आजम जी से यह पूछता हूं कि सक्रिय और पारम्परिक पत्रकारिता से साहित्यिक पत्रकारिता तक का सफर कैसा रहा? तो वे कहते हैं कि जिस समय मैंने पत्रकारिता में कदम रखा था, उस समय पत्रकारिता एक मिशन थी। इसलिए पत्रकारिता का स्वरूप अलग था।
सक्रिय और पारम्परिक पत्रकारिता के माध्यम से मैंने जनसरोकारों की पत्रकारिता की है। ऐसा नहीं है कि अब पारम्परिक पत्रकारिता में जनसरोकार नहीं है। अब भी पत्रकारिता में जनसरोकार है, लेकिन अब पत्रकारिता का स्वरूप काफी बदल चुका है। पारम्परिक पत्रकारिता करते हुए भी मैं किसी न किसी रूप में साहित्य से जुड़ा रहा।
साहित्यिक संस्कार ने ही मुझे बाद में साहित्यिक पत्रकारिता की तरफ मोड़ा।
जब मैं उनसे पूछता हूं कि आपको अधिक संतोष पारम्परिक पत्रकारिता करते हुए मिला या अब साहित्यिक पत्रकारिता करते हुए मिल रहा है? वे कहते हैं कि नि:संदेह मुझे ज्यादा संतोष अब साहित्यिक पत्रिकारिता करते हुए मिल रहा है।
यह धैर्य और एक अलग तरह की चुनौती का काम है। मुझे खुशी है कि अब मेरे इस काम को नोटिस किया जा रहा है। जब हम बिना शोर-शराबे के और बिना नारे लगाए काम करते हैं तो काम का महत्व ज्यादा होता है। मैं चुपचाप काम करने में ज्यादा विश्वास करता हूं। यही कारण है कि बड़े-बड़े साहित्यकारों ने भी ‘शीतल वाणी’ की प्रशंसा की है।
वीरेन्द्र आजम जी से यह पूछने पर कि ‘शीतल वाणी’ का सफर कैसे शुरू हुआ और आपको किस प्रकार की चुनौतियों का सामना करना पड़ा? वे कहते हैं वर्ष 1981 में एक साप्ताहिक समाचार पत्र के रूप में इसका प्रकाशन प्रारम्भ किया गया था, लेकिन एक साल बाद ही 1982 में इसे रंगमंच और साहित्य केंद्रित पाक्षिक पत्र बना दिया गया।
रंगमंच अंक का लोकार्पण प्रख्यात समालोचक, नाट्य समीक्षक व ‘नटरंग’ के संस्थापक संपादक नेमिचंद्र जैन द्वारा किया गया। कई तरह की चुनौतियों के चलते कुछ समय तक ‘शीतल वाणी’ का प्रकाशन स्थगित रहा, लेकिन एक नया संकल्प लिए इसका प्रकाशन वर्ष 2008 में पुन: शुरू हुआ।
हमारा मूल उद्देश्य था कि हम नए और वरिष्ठ रचनाकारों को एक मंच तो उपलब्ध करा ही सकें, साथ ही साहित्यकारों पर शोध करने वाले शोधार्थियों को एक ही स्थान पर ज्यादा से ज्यादा शोध सामग्री उपलब्ध हो जाए। आर्थिक संसाधनों के अभाव में यह काम आसान नहीं था, लेकिन सहारनपुर के तत्कालीन मंडलायुक्त आरपी शुक्ल ने कई तरह से सहायता कर हमें नैतिक बल प्रदान किया।
प्रबंध संपादक के रूप में मनीष कच्छल और सहायक संपादक के रूप में राजेंद्र शर्मा (नोएडा) का सहयोग हमें लगातार मजबूती प्रदान कर रहा है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि ‘शीतल वाणी’ के विशेषांकों का हिंदी जगत ने दिल खोलकर स्वागत किया। शोधार्थियों के बीच इन विशेषांकों की जबरदस्त मांग रही है।
जब मैं वीरेंद्र आजम से पूछता हूं कि आपने अब तक किन साहित्यकारों पर विशेषांक निकाले हैं? तो कहते हैं हमने पद्मश्री कन्हैयालाल मिश्र प्रभाकर, प्रख्यात कवि शमशेर बहादुर सिंह, प्रख्यात भाषाविद् डॉ. द्वारिका प्रसाद सक्सेना, सुविख्यात रंगकर्मी और कथाकार डॉ. लक्ष्मी नारायण लाल, सुप्रसिद्ध आलोचक कमला प्रसाद, चर्चित कथाकार उदय प्रकाश, वरिष्ठ कथाकार से.रा. यात्री, सुविख्यात कवि नरेश सक्सेना, प्रख्यात गजलकार कमलेश भट्ट कमल, कुशल प्रशासक एवं लेखक आरपी शुक्ल, सुप्रसिद्ध गीतकार राजेंद्र राजन तथा कथेतर गद्य शिल्पी बलराम पर ‘शीतल वाणी’ के विशेषांक प्रकाशित किए हैं।
इसके अतिरिक्त ‘शीतल वाणी’ ने प्रतिष्ठित कवि कुंवर नारायण, सुप्रसिद्ध गीतकार गोपाल दास नीरज, गीत ऋषि बाल कवि बैरागी, सबसे बड़े उपन्यास के रचयिता मनु शर्मा, प्रतिष्ठित गीतकार और बाल साहित्यकार कृष्ण शलभ पर विशेष सामग्री प्रकाशित की है।
‘शीतल वाणी’ के संपादक वीरेंद्र आजम जी से पूछने पर कि इस महत्त्वपूर्ण पत्रिका का संपादन करते हुए क्या आपकी रचनाशीलता प्रभावित नहीं हुई? वे उत्तर देते हैं, निश्चित रूप से संपादन का काम बहुत श्रम और समय मांगता है। ऐसे में रचनाशीलता प्रभावित होना निश्चित है।
संपादन के काम में व्यस्त रहते हुए कई बार तो घर के कार्यों के लिए भी समय निकालना मुश्किल होता है। असली बात यह है कि एक रचनाकार को किस प्रकार संतोष प्राप्त होता है, वह किस प्रकार अपनी बेचैनी और छटपटाहट दूर कर पाता है।
निश्चित रूप से यह बेचैनी और छटपटाहट कभी स्वयं कुछ लिखकर दूर होती है तो कभी दूसरे रचनाकारों के लेखन को मंच प्रदान कर दूर होती है। जब मैं उदीयमान और वरिष्ठ रचनाकारों को ‘शीतल वाणी’ में प्रकाशित करता हूं तो मुझे यह अहसास होता है कि सभी रचनाकारों के लेखन में कुछ न कुछ तथा कहीं न कहीं मैं स्वयं भी शामिल हूं।
अगर कोई संपादक ऐसा कर पाता है तो मुझे लगता है कि उससे बड़ा कोई सुख तथा संतोष इस धरती पर नहीं हो सकता। मैं इसी सुख के सहारे जी रहा हूं। बहरहाल इस कठिन दौर में वीरेंद्र आजम ‘शीतल वाणी’के माध्यम से हिन्दी की साहित्यिक पत्रकारिता को एक नया आयाम दे रहे हैं। निश्चित रूप से इस घुटन भरे माहौल में ‘शीतल वाणी’ की शीतल बयार सुखद अहसास करा रही है।
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