एक जमाने में हर मर्ज की कारगर दवा मानी जाने वाली एंटीबायोटिक अब बे-असर होती जा रही है। वजह है, इसका हद से ज्यादा उपयोग। दुनिया भर में इसके बेहतर विकल्प की खोज जारी है, ताकि एंटीबायोटिक की मदद से होने वाली पेचीदा बीमारियों का इलाज जारी रखा जाए। क्या हैं, एंटीबायोटिक के नकारा होते जाने की वजहें? एंटीबायोटिक का इस कदर भक्षण किया है कि अब वह बे-असर होकर लाइलाज हो गई है। यह संकट केवल इंसानों पर ही नहीं, बल्कि एंटीबायोटिक के अंधाधुंध सेवन और उसके निस्तारण से तमाम जीव-जन्तु, पशु-पक्षी और यहां तक कि मिट्टी पर भी मंडराता जा रहा है। आखिर एंटीबायोटिक दवा के नकारा होने की कौन सी वजहें हैं? कहते हैं कि एंटीबायोटिक के जरूरत से ज्यादा उपयोग से बैक्टीरिया सुपरबग में तब्दील होकर दवा के असर को समाप्त कर देता है। विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) के अनुसार, सुपरबग्स का एंटीबायोटिक प्रतिरोध बढ़ता जा रहा है और यह वैश्विक स्वास्थ्य से जुड़े 10 बड़े खतरों में शामिल है। आॅक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और इंस्टिट्यूट आॅफ हेल्थ मेट्रिक्स एंड इवैल्युएशन ने 204 देशों के 47.1 करोड रिकॉर्ड्स का अध्ययन कर पता लगाया है कि वर्ष 2019 में दुनियाभर में 13 लाख लोगों की जान इसकी वजह से गई है। मैडिकल जर्नल लैंसेट में प्रकाशित एक अध्ययन के अनुसार यदि यह सुपरबग इसी दर से फैलते रहे तो दुनिया में हर साल करीब एक करोड़ लोगों की मौत हो सकती है। आॅक्सफोर्ड स्टडी ने चिंता व्यक्त की है कि बच्चों में ड्रग रेजिस्टेंस बढ़ रहा है एवं नई एंटीबायोटिक्स के लिए रिसर्च की कमी है। सन 2019 में दुनिया में एंटीमाइक्रोबायल रेजिस्टेंट के कारण पांच में से एक मौत पांच साल से कम उम्र के बच्चों की हुई है। क्या होता है, सुपरबग? बैक्टीरिया, फंगस, पैरासाइट्स और वायरस समय के साथ म्यूटेट होते हैं, जिसकी वजह से इन पर दवाईयों का असर नहीं होता। नतीजे में एंटीमाइक्रोबायल रेजिस्टेंट पैदा होता है और दवाएं इन पर अपना प्रभाव नहीं दिखा पातीं। सुपरबग को एंटीबायोटिक-रेजिस्टेंट बैक्टीरिया भी कहते हैं।
एक बैक्टीरिया के सुपरबग में बदलने की मुख्य वजह ज्यादा मात्रा में एंटीबायोटिक दवाएं लेना होता है। नॉर्मल बैक्टीरिया का क्रोमोजोम एंटीबायोटिक दवा के प्रोटीन मॉलिक्यूल्स का तोड़ निकालने लगता है और उनके खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता विकसित कर लेता है। यह बैक्टीरिया दूसरे बैक्टीरिया के साथ मिलकर ऐसा संक्रमण पैदा कर सकता है, जिससे निपटना मुश्किल हो सकता है।
इससे निपटने के लिए अब अमेरिकी वैज्ञानिकों ने फैबिमायसिन नाम का एक ऐसा सुपर ड्रग विकसित किया है, जो सुपरबग्स को मारने का काम करेगा। इस नई एंटीबायोटिक दवा की खोज से प्रतिवर्ष सुपरबग्स के कारण जान गंवाने वाले लाखों लोगों को बचाया जा सकेगा। यूनिवर्सिटी आॅफ लिवरपूल की रिसर्च से पता चला है कि इस ड्रग ने चूहों में किसी भी हेल्दी टिशू को नुकसान पहुंचाए बिना सुपरबग्स को खत्म कर दिया।
फैबिमायसिन एक ऐसा सुपर ड्रग है, जिसका ट्रायल सबसे पहले चूहों पर किया गया। इससे चूहों में ड्रग-रेसिस्टेंट निमोनिया और यूरिनरी ट्रैक्ट इन्फेक्शन्स को ठीक किया गया। यह ड्रग सुपरबग्स की 300 से ज्यादा स्ट्रेन्स को मारने में भी कारगर है। यूनिवर्सिटी आॅफ इलिनोइस के वैज्ञानिकों ने फैबिमायसिन के 14 वर्जन्स बनाए है। यह स्किन इन्फेक्शन, ब्लड पॉइजनिंग और टॉक्सिक शॉक सिंड्रोम जैसी स्थितियां पैदा करने वाले सुपरबग्स पर प्रभावी है। अमेरिका की यूनिवर्सिटी आॅफ पेन्सिलवेनिया के पेरलमैन स्कूल आॅफ मेडिसिन के शोधकतार्ओं ने एक ततैया के जहर से एक नया एंटीबायोटिक अणु तैयार किया है। अमेरिकी वैज्ञानिकों ने इसके जहर से ऐसे एंटीमाइक्रोबियल अणु विकसित किए हैं जो उन बैक्टीरिया को खत्म करेंगे जिन पर दवाओं का असर नहीं हो रहा। इस एंटीबायोटिक अणु के प्रयोग से पता चला की 80 फीसदी चूहे जिंदा रहे किन्तु जिन चूहों को इस दवा की मात्रा अधिक दी गई उनमें दुष्प्रभाव भी हुए। भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने 2021 में 10 अस्पतालों में अध्ययन करके पाया था कि एंटीबायोटिक के ज्यादा सेवन और सुपरबग की वजह से कोरोना महामारी अधिक घातक हुई थी। आधे से अधिक कोविड मरीजों को उपचार के समय या बाद में बैक्टीरिया या फंगस के कारण इन्फेक्शन हुआ, जिससे उनकी मौत तक हो गई। इसलिए जरुरी है सुपरबग्स को मारने वाला एंटीबायोटिक ‘सुपर ड्रग’ भारत में भी बनाना। हालांकि भारत में अभी सुपरबग्स का खतरा नहीं है, लेकिन हमें हर तरह की महामारी से बचने के लिए पहले से ही तैयार रहने की जरूरत है। भारत में सुपर ड्रग्स को बनाने या नई एंटीबायोटिक्स के लिए रिसर्च की कमी है इसलिए इस पर शोध कार्य करने के लिए प्रयोगशालाओं में उन्नत तकनीक व संसाधनों को उपलब्ध करवाकर सुपर ड्रग विकसित करना चाहिए, ताकि भविष्य में सुपरबग्स की वजह से भारत में किसी की जान न जाए।