Friday, December 1, 2023
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मेडिकल में एमआरआई के लिए आठ माह की वेटिंग

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  • संसाधनों के अभाव में नहीं मिल रही चिकित्सा सेवाएं
  • केवल एक एमआरआई, एक सिटी स्कैन मशीन के सहारे मेडिकल कॉलेज

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: केंद्र व राज्य सरकारें सरकारी अस्पतालों में आम जनता को अच्छी और सस्ती चिकित्सा सेवाएं देनें के दावे करती हैं। लेकिन इन दावों की पोल खोल रहा है मेडिकल का रेडियोलॉजी विभाग। यहां रोजाना तीन से साढ़े तीन सौ मरीज एमआरआई और सिटी स्कैन के लिए पहुंचते है।

लेकिन उन्हें लंबा इंतजार करना पड़ रहा है। एमआरआई करानें के लिए मरीजों को आगामी अप्रैल माह तक की वेटिंग दी जा रही है। जबकि सिटी स्कैन के लिए भी मरीजों को कई दिनों तक इंतजार करना पड़ रहा है। इसको लेकर मेडिकल प्रशासन संसाधनों का आभाव बता रहा है।

मेडिकल के रेडियोलॉजी विभाग में रोजाना करीब साढ़े तीन सौ मरीज एमआरआई व सिटी स्कैन करानें पहुंचते है। लेकिन विभाग में स्टॉफ की कमी के चलते मरीजों को वेटिंग दी जा रही है। एमआरआई के लिए आगामी वर्ष के अप्रैल माह का समय दिया जा रहा है। जबकि सिटी स्कैन के लिए भी कई दिनों तक मरीजों को इंतजार करना पड़ रहा है। ऐसे में मरीजों की समय से एमआरआई नहीं होने पर उनकी बीमारी का इलाज करने में भी समय लगता है।

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आठ माह की वेटिंग के बाद बाहरी मरीजों को एमआरआई के लिए बुलाया जा रहा है जिस कारण उन्हें निजी जांच केंन्द्रों का सहारा लेना पड़ रहा है। रेडियोलॉजी विभाग में एमआरआई व सिटी स्कैन का समय निर्धारित है। सुबह आठ बजे से दोपहर दो बजे तक ही एमआरआई व सिटी स्कैन होते है। इसके बाद मरीजों को निजी जांच केंन्द्रों पर यह जांच कराने के लिए जाना पड़ता है।

मेडिकल में जहां एक एमआरआई का यूजर चार्ज 15 सौ रूपये है वहीं निजी जांच केंन्द्रों पर इसके लिए छह हजार रूपये लिए जाते है। ऐसे में गरीब व आर्थिक रूप से कमजोर परिवारों के मरीजों को चार गुना कीमत चुकानी पड़ रही है। स्टॉफ की कमी की वजह से रिपोर्ट भी समय पर तैयार नहीं हो पाती जिस वजह से मरीजों को कई दिनों तक चक्कर लगाने पड़ते है।

प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा ने दिया था आश्वासन

बीती 6 अगस्त को प्रमुख सचिव चिकित्सा शिक्षा आलोक कुमार ने मेडिकल में मरीजों को मिलने वाली चिकित्सा सेवाओं को लेकर निरीक्षण किया था। इस दौरान उन्होंने इमरजेंसी में नई सिटी स्कैन मशीन लगाने का आश्वासन दिया था लेकिन आगे कोई कार्रवाई नहीं हुई। मेडिकल प्रशासन द्वारा कई बार शासन से रेडियोलॉजी विभाग के लिए स्टॉफ की मांग की है लेकिन इसका भी कोई नतीजा नहीं मिला।

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