गर्मी के मौसम में तेज गर्म हवाओं के संपर्क में आने से लू लग जाया करती है। लू लगने से व्यक्ति की मृत्यु तक हो सकती है। यह आवश्यक नहीं है कि लू धूप में निकलने से ही लगे। घर में रहने पर भी लू लग सकती है और परेशान कर सकती है। अधिक तापमान वाले कमरे में अधिक देर तक रहने पर भी लू लग सकती है।
लू लगने पर प्राय: लोग शरीर पर बर्फ मलकर लू के प्रभाव को कम करना चाहते हैं, परंतु इससे लू लगे व्यक्ति पर कोई असर नहीं होता क्योंकि स्वेद गं्थियों की कार्यक्षमता इस समय प्रभावित नहीं होती है। प्राथमिक उपचार कर रहे कुछ व्यक्ति यह नहीं जानते कि किस सीमा तक शरीर का तापमान ठंडक पहुंचाकर कम कर देना चाहिए क्योंकि यदि तापमान 37 डिग्री में फारेनहाइट हो गया तो रक्तचाप इतना कम हो जाता है कि झटके लगने से भी मृत्यु हो सकती है।
गर्मी के दिनों में बाह्य वातावरण का तापमान 50 डिग्री सेंटीगे्रड तक भी पहुंच जाया करता है जबकि शरीर का सामान्य तापमान 37 डिग्री रहता है।
धूप में रखी वस्तुएं इतनी अधिक गर्म हो जाती हैं कि छूते ही हाथ जलने लगते हैं पर नियंत्रण केन्द्र शरीर के अन्दरूनी तापमान को बढ़ने ही नहीं देता। अधिक गर्मी शरीर से निकलती रहती है तथा साथ-साथ त्वचा में स्थित स्वेद गं्रथियां भी ढेर सारा पसीना उद्वेचित कर देती हैं जो वातावरण में वाष्पीकृत होता रहता है जिससे त्वचा को ठंडक पहुंचती रहती है और बाह्य त्वचा का भी तापमान बढ़ने नहीं पाता। यह नियंत्रण केन्द्र मस्तिष्क में ही स्थित रहता है और उसी के आदेश पर कार्य करता रहता है।
शरीर में गर्मी से प्रभावित होने की संभावना उस समय होती है जब व्यक्ति विशेष बिना कुछ खाये-पीए तथा बिना सिर ढके तेज धूप में बाहर निकल जाता है और देर तक गरम वातावरण में रहता है। सिर के ढके न रहने से गर्मी व गर्म हवा मस्तिष्क के संपर्क में आकर रक्त नलिकाओं को फैला देती है जिससे बहुत सारा रक्त इन रक्त नलिकाओं में जमा हो जाता है जिसके कारण मस्तिष्क अधिक गर्म हो जाता है, तापमान बढ़ जाता है एवं स्नायुविक उपद्रव शुरू हो जाते हैं। अगर गर्मी का प्रभाव हृदय, श्वास और रक्त नलिकाओं के नियंत्रण केन्द्र पर पड़ता रहा तो प्रभावित व्यक्ति की मृत्यु तक हो जाती है।
लू बहुत ही गंभीर प्रकार का रोग है जिसका आक्रमण अचानक होता है और रोगी बेहोश होने लगता है। शरीर का तापमान भी 103 डिग्री से अधिक हो जाता है जिससे शरीर बुरी तरह तपने लगता है पर पसीना नहीं निकलता और इस कारण शारीरिक तापमान और अधिक बढ़ जाता है। रोगी बहुत परेशान-सा दिखता है और बिना किसी उद्देश्य के हरकतें करता है। श्वास अधिक तेज हो जाता है। त्वचा की गर्मी अधिक बढ़ जाती है। उसकी रक्त नलिकाएं फैलने के स्थान पर और अधिक सिकुड़ जाती हैं जिससे शरीर की गर्मी निष्कासित नहीं हो पाती है और तापमान बढ़ते-बढ़ते 110 डिग्री तक पहुंच जाता है। इस स्थिति के दो घंटे के अंदर ही रोगी की मृत्यु तक हो सकती है।
गर्मी से सभी प्रभावित नहीं होते बल्कि जो अत्यधिक प्रभावित होते हैं वे इस प्रकार हैं-
अम्ल निरोधक औषधियों के सेवन करने वाले व्यक्ति गर्मी में लू के प्रभाव में आ सकते हैं। जो व्यक्ति आमाशय अम्ल रस निरोधक औषधियां आदि का सेवन करते हैं, उनकी स्वेद ग्रंथियों की कार्यक्षमता प्रभावित होने से पर्याप्त मात्र में पसीना नहीं निकल पाता जिससे त्वचा ठंडी न हो पाने के कारण अन्दरूनी गर्मी को निष्कासित नहीं कर पाती और ऐसे व्यक्ति गर्मी से परेशान होकर लू की चपेट में आ जाते हैं।
कुछ व्यक्ति अधिक मद्यपान करने के अभ्यस्त होते हैं। मदिरा के पीने से पेशाब की मात्र बढ़ जाती है और उचित मात्रा में पानी न पीने से शरीर का पानी धीरे-धीरे निर्जलीयता की ओर बढ़ने लगता है। परिणामस्वरूप लू की चपेट में आ जाता है।
सूती कपड़ों के उपयोग न करने से, कसे हुए सिंथेटिक कपड़े पहनने से, स्तनों पर शीतल जल की धार न डालने पर भी घर बैठे ही लू पकड़ लेती है।
गर्मी के दिनों में भाग-दौड़, नाच-कूद, अत्यधिक व्यायाम, आदि करने से भी लू का प्रकोप हो जाता है।
लू का उपचार
रोगी को ठंडी जगह पर ले जाकर लिटा देना चाहिए। उसके सभी कपड़ों को तत्काल उतार देना चाहिए तथा पानी से भीगी हुई चादर को रोगी के ऊपर डाल देना चाहिए। रोगी के ऊपर लगातार ठंडा पानी डालकर चादर को गीला रखना चाहिए। सिर पर ठंडे पानी की पट्टी देनी चाहिए। पंखे को पूरी रफ्तार पर चला दीजिए या हाथ का पंखा झलिए। यह ध्यान रखना चाहिए कि इन विधियों से शरीर का तापमान 102 डिग्री से नीचे न आने पाये अन्यथा रक्तचाप गिरने से मृत्यु तक हो
सकती है।
लू के रोगी का बुखार उतारने के लिए 6-6 घंटे बाद पेरासिटामोल की एक-एक गोली देते रहना चाहिए। नमक और शक्कर का घोल पिलाने से ताप मान का स्तर सामान्य होने लगता है। इतना सब करने से रोगी बारह घंटों में ठीक हो जाता है।
रोगी के होश में आने पर निम्नांकित पेयों को देना चाहिए-
- लस्सी, शर्बत, जलजीरा आदि पेय पदार्थों को पिलाना चाहिए मगर यह ध्यान रखना चाहिए कि पिलाया जाने वाला पदार्थ अधिक ऊर्जा उत्पन्न करने वाला न हो।
- गन्ने के शुद्ध व ताजे रस को रोगी को पिलाना चाहिए। गन्ने को चूसना अधिक हितकर होता है।
- गर्मी के आते ही जल पीने की मात्रा को बढ़ा देना चाहिए। धूप में निकलने से पहले पानी पी लेना हितकर होता है।
- कच्चे आम को पकाकर उसमें नमक डालकर, उसके शर्बत को पीना लू के लिए रामबाण औषधि होती है।
- धूप में निकलते समय सिर पर टोपी, तौलिया आदि डालकर निकलना चाहिए।
- गर्मी में सूती व ढीले-ढाले कपड़ों को ही हमेशा पहनिए।
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आनंद कुमार अनंत