डॉ. वेद प्रकाश वटुक द्वारा लिखित गद्य का अध्ययन कर चुकी हूँ उनका पद्य भी गद्य की तरह ही उत्कृष्ट कोटि का है । उत्तर राम कथा पुस्तक मुझे विमोचन में मिली थी। राम कथा में लेखक वैदेही का दर्द लिखने बैठते हैं । राम पर प्रश्न उठाते हैं। जाने कौन आकर उनकी कलम पकड़ लेता है। वैदेही का दर्द उकेरते- उकेरते राम का दर्द स्वत: ही सम्मुख आ खड़ा होता है ।
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लेखक उसे स्वत: ही उकेरने लगते हैं। एक महानायक की विवशता इतने मार्मिक रूप में पहले शायद ही लिखी गई हो ।”एक और वैदेही” खण्डकाव्य रचते वक्त मेरे साथ भी ऐसा ही हुआ था। उत्तर राम कथा में कवि ने सम्पूर्ण श्रद्धा के साथ परिस्थितियों से विवश राम के निर्णय और वैदेही के भीतर उगे असीम दर्द के झंझावातों को बहुत खूबसूरती से उकेरा है।
एक ही छंद में सम्पूर्ण खण्ड काव्य को लिखना आसान कार्य नहीं होता। सुगढ़, सुंदर शिल्प और भाषा शैली के साथ नो अध्यायों में विभाजित यह खण्डकाव्य वास्तव में अद्भुत कृति है। जो राम और सीता के ही नहीं भरत, लक्ष्मण, उर्मिला, आदि परिजनों के साथ दरबारी गणों, शंबूक आदि तक की मनस्थिति का बेहतरीन चित्रण प्रस्तुत करती है। उन्होंने रामचरित के उदात्त आदर्श पर सवाल उठाये फिर स्वयं उनके उत्तर भी लिख दिए हैं।
मिथकों का उपयोग कर उन्होंने यह खण्ड काव्य समाज हित में रचा है। राम को उन्होंने सम्पूर्ण सम्मान के साथ प्रस्तुत करते हुए ही अपने खण्डकाव्य की रचना की है। रोचक पठनीय मननीय कृति साहित्य की अमूल्य धरोहर बनेगी। कोहिनूर की तरह साहित्य के क्षितिज पर दैदीप्यमान रहेगी । राम के हृदय में बही करुण रस की सरिता में पाठक डूबकर रह जाता है । खंड काव्य में महानायक राम की मन:स्थिति से समाज में बदलाव की अपेक्षा भी की गई है। डॉ वेदप्रकाश वटुक जी का समग्र विपुल- साहित्य, व्यक्तित्व, सत्य -न्याय के
स्तंभ पर टिका हुआ है।
उनकी पँक्तियाँ देखिए
सीता परीक्षा शाप को रौरव-नरक भोगे सभी
यह पता होता यदि मुझे
क्यों राजपद लेता कभी!
यदि यह अयोध्या पाप-अत्याचार -भू थी आपदा,
क्यों लौटता ,वन में भटक लेता सहर्ष समुद सदा ।।
पा राज्य भेंट अनीतियाँ, दूँ भ्रांत मन की भूल है
साम्रज्य हर खुद पाप- -अत्याचार- हिंसा- मूल है
शोभा मुझे देती नहीं निज वेदना की बात भी
सम्राट की अपनी व्यथा होती नहीं कोई कभी।।
समूचा खण्डकाव्य राम की मयार्दा, वेदना की मार्मिकता द्वारा रचित है ।
राम को सीता के साथ हुए अनय के कारण राज्य और जीवन तक भार लगने लगता है ।राम की उस अदृश्य पीड़ा को उकेरने के लिए लेखक साधुवाद के पात्र हैं। खण्डकाव्य को पढ़कर राम पर प्रश्न उठाने वाले भी द्रवित ही होंगे। यधपि प्रश्न अपनी जगह खड़े भी रहे हैं। राम की विवशता देख जैसे वे भी भावुक हो गए लगते हैं।
शंबूक के प्रश्न अंतरात्मा को झकझोरते हैं, निरुत्तर करते हैं । उसके रूप में शूद्र समाज का हर व्यक्ति जैसे अपने प्रति हुए अन्यायों का भेदभाव का अत्याचारों का कच्चा चिट्ठा अनुनय – विनय के साथ खोलकर दिखा रहा है।लेखकीय धर्म का निर्वाह लेखक ने पूर्ण निष्ठा के साथ किया है। उनका लेखन हर वर्ग के व्यक्ति को परिष्कृत करने वाला है।
इस तरह की पुस्तकें सरकार को कॉलेजज में कोर्स में लगानी चाहिये।रामायण का हर पात्र समाज के लिए प्रेरणास्रोत रहा है। खण्डकाव्य में हर विषय मौलिकता और नवीनता से उभरा है। समाज के भेदभाव ग्रसित जनों को शंबूक के माध्यम से कवि की फटकार आहत कर सकती है । यह बेहद निर्भय और सत्य न्याय का पक्षधर कवि ही कर सकता है। ऐसी कालजयी कृतियाँ ऐतिहासिक दस्तावेज बनती हैं।
डॉ. पुष्पलता