- अकेली शिक्षा नहीं आएगी काम, संस्कार भी है जरूरी
- संस्कारों के अभाव में लोग माता-पिता से कर रहे किनारा
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: सदर भैंसाली मैदान में चल रही श्रीमद् भागवत कथा के तीसरे दिन वृदांवन से पधारे कथावाचक अनिरुद्धाचार्य ने कथा की शुरुआत द्रौपदी की कथा से किया। अच्छा वर पाने के लिए उन्होंने वर्षो तक भगवान शिव की अर्चना की थी। महाराज ने कहा कि आज लोग बच्चों को डिग्री तो दिला देते हैं, लेकिन संस्कार नहीं देते। जिसकी वजह से वह दूसरों की इज्जत नहीं करते। पहले लोगों के घर मिट्टी के हुआ करते थे, लेकिन उनके मन में एक-दूसरे के लिए प्रेम होता था।
आज बच्चों को शिक्षा तो स्कूल में मिल रही हैं, लेकिन संस्कार देने के लिए कोई जगह नहीं है। भ्रष्टाचार बढ़ रहा है। सड़क बनाई जा रही हैं, लेकिन जल्द ही वह उखड़कर हाथ में आ जाती है। इसको क्या माने संस्कारों की कमी। क्योंकि जो बड़े पद पर बैठे हैं। वह संस्कार कम लिए हैं, तभी तो इस तरह का काम कर रहे हैं। माताओं को बच्चों के अंदर बुजुर्गों की सेवा करने का भाव उत्पन्न करना होगा तभी देश तरक्की कर सकेगा।
किसी पर विश्वास मत करो सदा भगवान पर विश्वास करो वहीं आपकी नय्या पार लगाएंगे। संतोष सबसे बड़ा धर्म है अपनी इच्छाआें को कंट्रोल करना सीखे। इच्छाओं को अंत कर दीजिए और भगवान के चरणों में आत्म समर्पण कर दें। माता-पिता को चाहिए कि बच्चों को समय पर जिम्मेदारी दे ताकि वह दूसरे काम में न लगे और संस्कारवान बने रहे। यदि जिम्मेदारी नहीं दोगे तो वह गलत मार्ग पर चल देगा।
भजनों पर झूमे भक्तगण
कथा के तीसरे दिन बारिश लोगों की आस्था को नहीं डगमगा पाई और वह भिगते हुए कथा सुनने के लिए पंडाल पहुंंचे और कुर्सियों पर कथा समाप्त होने तक बैठे रहे। वहीं, कान्हा जी के भजनों पर श्रोताआ खूब झूमे। मैं तो श्याम की दीवानी हूं, तुम संग नाता जोड़ा है आदि गीत महाराज ने गाकर सुनाए।