”करीब पांच हजार से ज्यादा झोलाछाप गली-मोहल्लों और गांव-गांव बैठे हैं। क्लीनिक खोले सब कुछ जानते हुए भी स्वास्थ्य विभाग बजाय कार्रवाई के सिर्फ लीपापोती पर उतारू है। कुछ तो बात जिसकी वजह से स्वास्थ्य विभाग इन झोलाछाप को बचा रही है।”
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: आयुर्वेद और युनानी चिकित्सकों को आपरेशन का अधिकारी देने पर इतना हो हल्ला और विरोध हो रहा है। पूरे देश के एलोपैथिक डाक्टर सड़कों पर हैं। आंदोलन का ऐलान किया गया है, लेकिन झोलाछाप डाक्टर जिन्होंने न तो डाक्टरी कोई पढ़ाई की है और न ही आपरेशन का क, ख, ग जानते हैं वो आए दिन सरेआम मरीजों की चीरफाड़ करते हैं। अब तक न जाने कितने भोले भाले मरीजों की जिंदगी भी छीन भी चुके हैं, उनके खिलाफ कोई मुंह खोलने को तैयार नहीं। वहीं, स्वास्थ्य विभाग भी कथित हफ्ता वसूली के चलते चुप बैठा है।
विरोध करने वालों का आईना
वैद्याचार्य डा. ब्रजभूषण शर्मा का तर्क है आयुर्वेद व यूनानी के वैद्य व हकीम तो एमबीबीएस के बाद एमएस की डिग्री हासिल करने वाले एलोपैथी के डाक्टरों की तर्ज पर ही करीब आठ से 10 साल की पढ़ाई के बाद ही आॅपरेशन करना शुरू करेंगे। जहां तक आयुर्वेद की बात है तो करीब तीन हजार साल पूर्व जब यह चिकित्सा पद्धति जन्मी थी तभी से शैल्य चिकित्सा का प्रावधान है। इसके प्रमाण मौजूद है। ये बात अलग है, लेकिन पूरे शहर में या कहें जिला भर में करीब पांच हजार झोलाझाप आए दिन किसी न किसी की चीर फाड़ करते हैं, उन पर आईएमए कोई आवाज नहीं उठाता।
तमाम मर्जों में बस एक दवा
झोलाछाप बताए जा रहे डाक्टर तमाम मर्जों में केवल एक दो प्रकार की दवाएं ही देते हैं। खुद एलोपैथी के चिकित्सकों ने बताया कि आमतौर पर इनके द्वारा बुखार व सर्दी में पैरासिटामोल, क्रोसीन, सारी डॉन, ब्रुफिन या फिर विटामिन की गोलियां दी जाती हैं। बुखार कैसा है किस कारण है। शरीर में दर्ज किस वजह से है, इससे इनको कोई मतलब नहीं होता। ये हर मर्ज में दो-तीन गिनी चुनी ही दवाएं देते हैं।
एमआर बने हैं मददगार
पहले तो नहीं ऐसा होता था, लेकिन अब आमतौर पर यह किया जा रहा है। कई दवा कंपनियों के मेडिकल रिप्रेजेन्टिड इनको सैंपल की दवाएं थमा देते हैं। जिसकी वजह से झोलाछाप का धंधा अब पहले से अच्छा चल रहा है। एमआर इन्हें यह भी ज्ञान देते हैं कि फलां मर्ज में कौन-सी दवा लिखनी है। इससे झोलाछाप का फायदा होता ही है। साथ ही एमआर का सेल टारगेट भी पूरा हो जाता है।
सस्ता इलाज मरीजों की भरमार
दरअसल, इलाज सस्ता होने की वजह से इनके पास मौसम कोई भी कभी भी मरीजों की कमी नहीं होती। आमतौर पर 50 से 100 रुपये में मरीज को देखने की फीस के साथ ही दवा भी दे देते हैं। इस दवा में खाने के अलावा कई बार पीने के टॉनिक भी मिलते हैं। अशिक्षा की वजह से इन्हें सस्ता और टिकाऊ माना जाता है।
चीर फाड़ का इंतजाम
तमाम झोलाछाप ऐसे हैं, जिनके यहां डिलीवरी से लेकर पथरी सरीखे छोटे-मोटे आपरेशनों का इंतजाम है। गांव की दांई या फिर उसके समक्ष किसी भी महिला को झोलाछाप अनुबंध के हिसाब से पेमेंट करते हैं। इसी तर्ज पर छोटे-मोटे आपरेशन करते हैं। ये आपरेशन कोई डिग्री धारक नहीं बल्कि आठवीं, दसवीं पास किसी बडेÞ डाक्टर के यहां काम करने वालों से कराए जाते हैं।
इन पर क्यों साध रहे चुप्पी
आयुर्वेद महासम्मलेन के राष्ट्रीय महामंत्री वैद्य ब्रज भूषण शर्मा का कहना है कि तमाम झोलाछाप चीरफाड़ कर रहे हैं। आयुर्वेद चिकित्सक तो करीब 10 साल की पढ़ाई के बाद आॅपरेशन करेंगे। मगर आईएमए वालों को झोलाछाप नजर नहीं आते। |
सूचना पर करते हैं कार्रवाई
स्वास्थ्य विभाग के जिला सर्विलांस अधिकारी डा. प्रशांत कुमार का कहना है कि झोलाछापों के खिलाफ स्वास्थ्य विभाग का लगातार अभियान चलता है। पिछले दिनों ही पल्लवपुरम के कई ऐसे ही लोगों के खिलाफ एफआईआर भी दर्ज करायी गयी है। |
गेंद स्वास्थ्य विभाग के पाले में
आईएमए की मेरठ चैप्टर की सेक्रेटरी डा. मनीषा त्यागी का कहना है कि स्वास्थ्य विभाग को ऐसे झोलाछापों के खिलाफ कार्रवाई करनी चाहिए। स्वास्थ्य विभाग को कई बार ऐसी सूचना मिलती हैं, लेकिन प्रभावी कार्रवाई जरूरी है। |
स्वास्थ्य सेवाओं का सिरदर्द
मेडिकल प्राचार्य डा. ज्ञानेंद्र कुमार का कहना है कि इस प्रकार के चिकित्सक स्वास्थ्य सेवाओं खासतौर से मेडिकल के लिए सिरदर्द हैं। ये केस बिगाड़ देते हैं, जब मरीज के पास बहुत कम समय रहता है। तब उसको मेडिकल रेफर किया जाता है। तब डाक्टरों के पास विकल्प बहुत कम होते हैं। |