- पहले दिन बनेंगे पांच खास योग
- सभी दिन पूर्ण तिथियों में नौ दिन श्रृद्धा के साथ मनेगा नवरात्र का उत्सव
- तीन अक्टूबर को महाष्टमी, चार को महानवमी और पांच को मनेगा विजयदशमी का पर्व
- देवी मंदिरो में दो साल बाद उमड़ेगी भक्तों की भारी भीड
जनवाणी संवाददाता |
मेरठ: शारदीय नवरात्र आश्विन (क्वार) मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तिथि तक मनाई जाते है। शारदीय नवरात्र को शरद नवरात्र भी कहा जाता है। इस साल शारदीय नवरात्र 26 सितंबर को प्रारंभ होकर चार अक्तूबर को नवमी तक रहेंगे। पांच अक्तूबर को विजय दशमी का पर्व मनाया जाएगा। नवरात्रि का पर्व देवी शक्ति मां दुर्गा को समर्पित है।
नवरात्रि के नौ दिनों में देवी शक्ति के अलग-अलग रुपों की पूजा की जाती है। शारदीय नवरात्रि अश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से लेकर नवमी तक रहती है। नवरात्रि के समय घरों में कलश स्थापित किए जाते हैं। शारदीय नवरात्र में घर-घर में कलश स्थापना कर आदि शक्ति माता भवानी की आराधना होगी लोग इन नौ दिनों में दुर्गा सप्तशती का पाठ भी करते हैं। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार नवरात्रि में भगवान श्रीराम ने रावण का वध करने से पहले देवी शक्ति की अराधना की थी।
कलश स्थापना शुभ मुहूर्त
प्रतिपदा तिथि आरंभ 26 सितंबर सुबह 3 बजकर 23 मिनट पर और प्रतिपदा तिथि का समापन 27 सितंबर सुबह तीन बजकर आठ मिनट पर। ज्योतिषाचार्य आचार्य मनीष स्वामी ने बताया कि अभिजीत मुहूर्त कलश स्थापना के लिए श्रेष्ठ मुहूर्त माना जाता है। शारदीय नवरात्रि के घटस्थापना या कलश स्थापना का शुभ मुहूर्त अभिजीत मुहूर्त में 11 बजकर 48 मिनट से 12 बजकर 36 मिनट के बीच करना उत्तम होगा।
आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि से शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ होता है। वहीं उससे एक दिन पहले यानी अमावस्या को सभी पितृ गण विदा हो जाते हैं। जिसके बाद मां दुर्गा का आगमन होता है। कलश स्थापना के साथ पूरे नौ दिन तक मां दुर्गा के विभिन्न स्वरूपों की पूजा की जाती है।
इस साल शारदीय नवरात्रि का प्रारंभ 26 सितंबर सोमवार से हो रहा है। इस साल मां दुर्गा हाथी की सवारी पर पृथ्वी लोक में पधारेंगी। जिस दिन से नवरात्रि का प्रारंभ होता है उसी दिन के अनुसार माता अपने वाहन पर सवार होकर आती हैं। माता अपने भक्तों को एक विशेष संकेत भी देती हैं।
माता की सवारी और संकेत
देवी भागवत पुराण में मां दुर्गा की सवारी के बारे में काफी विस्तार से बताया गया। शशि सूर्य गजरुढा शनिभौमै तुरंगमे, गुरौशुक्रेच दोलायां बुधे नौकाप्रकीर्तिता। श्लोक के अनुसार यदि नवरात्रि सोमवार या रविवार से प्रारंभ होती है तो माता हाथी पर विराजमान होकर आती है।
यदि नवरात्रि शनिवार या मंगलवार से प्रारंभ हो तो माता की सवारी घोड़ा होता है। वहीं यदि शुक्रवार और गुरुवार को नवरात्रि शुरू होती है तो मातारानी डोली में आती हैं। यदि बुधवार से नवरात्रि प्रारंभ हो तो माता का आगमन नौका पर होता है।
हाथी की सवारी का अर्थ होता है अधिक वर्षा
इस बार मां दुर्गा हाथी पर सवार होकर आ रही हैं। इसका अर्थ है कि इस बार वर्षा अधिक होगी। जिसके प्रभाव से चारों ओर हरियाली होगी। इससे फसलों पर भी अच्छा प्रभाव पड़ता है। इससे देश में अन्न के भंडार भरे रहेंगे। साथ ही धन-धान्य में वृद्धि होगी और संपनता आएगी।
इस प्रकार रहेगी तिथियां
- 26 सितंबर प्रतिपदा तिथि मां शैलपुत्री पूजा और घटस्थापना
- 27 सितंबर द्वितिया तिथि मां ब्रह्मचारिणी पूजा
- 28 सितंबर तृतीया तिथि मां चंद्रघंटा पूजा
- 29 सितंबर गुरुवार चतुर्थी तिथि मां कुष्मांडा पूजा
- 30 सितंबर पंचमी तिथि मां स्कंदमाता पूजा
- 1 अक्टूबर षष्ठी तिथि मां कात्यायनी पूजा
- 2 अक्टूबर सप्तमी तिथि मां कालरात्री पूजा
- 3 अक्टूबर अष्टमी तिथि मां महागौरी पूजा दुर्गा महाष्टमी
- 4 अक्टूबर नवमी तिथि मां सिद्धरात्री पूजा और दुर्गा महानवमी