Friday, March 29, 2024
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अंधाधुंध भू-जल दोहन पर लगाम जरूरी

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ramankantवर्तमान समय में वर्ष 1952 के मुकाबले भारत में पानी की उपलब्धता एक तिहाई रह गई है, जबकि आबादी 36 करोड़ से बढ़कर 130 करोड़ के करीब पहुंच गई है। हालात ये हो गए हैं कि हम लगातार भूमिगत जल पर निर्भर होते जा रहे हैं। जिसके कारण भूमिगत जल प्रत्येक वर्ष औसतन एक फीट की दर से नीचे खिसक रहा है। इससे उत्तर भारत के ही करीब 15 करोड़ लोग भयंकर जल संकट से जूझ रहे हैं। धरती का सीना चीरकर लगातार पानी खींचने का ही परिणाम है कि आज देश के एक चौथाई ब्लॉक डार्क जोन में आ चुके हैं और यह संख्या लगातार बढ़ती ही जा रही है। इस स्थिति से देश का कोई भी हिस्सा नहीं बच पाया है। उत्तर से लेकर दक्षिण और पूरब से लेकर पश्चिम तक हर जगह पानी को लेकर मारामारी है। देश में गांवों से लेकर कस्बों तथा छोटे से लेकर बड़े शहरों में पीने के पानी के लिए टैंकर व कैम्पर का चलन आम हो गया है। देश के कुछ हिस्सों में पानी के लिए कतारों में लगना भी अब लोगों की दिनचर्या का हिस्सा हो गया है। गांवों में तो स्थिति और भी बदतर हो गई है। पहले जो पानी औसतन पांच मिनट की दूरी पर उपलब्ध था। उसके लिए आज औसतन आधा घण्टे तक चलना पड़ता है। राजस्थान और गुजरात के गांवों में यह स्थिति प्रचुरता से देखी जा सकती है और दक्षिण भारत के राज्यों के कुछ हिस्से भी इसकी जद में हैं।

नासा के सैटेलाइट ग्रेविटी रिकवरी एण्ड क्लामेट एक्सपेरीमेंट के अनुसार पंजाब, हरियाणा व राजस्थान में भू-जल भंडार तेजी से खाली हो रहे हैं। विश्व बैंक का आंकलन है कि अगले 25 सालों में दुनिया के 60 प्रतिशत भू-जल स्रोत खतरनाक स्थिति में पहुंच जाएगे। यह स्थिति भारत के लिए इसलिए भी अधिक चिंता करने वाली है, क्योंकि हमारी करीब 70 प्रतिशत मांग भू-जल के स्रोतों से ही पूरी होती है। अगर ऐसा हुआ तो न फसल उगाने के लिए पानी होगा और न कल-कारखानों में सामान बनाने के लिए। कुषि और उधोग धंधे तो बर्बाद होंगे ही, हमारी आबादी का एक बड़ा हिस्स पानी की बूंद-बूंद के लिए तरस जाएगा।

एक अनुमान के अनुसार पिछले दिनों देश में लगभग दो महीने चली तालाबंदी के चलते अरबों-खरबों लीटर पानी की बचत हुई। इसके पीछे समझ में आने वाले कारण भी स्पष्ट हैं। वह चाहे निजी व सार्वजनिक वाहनों पर खर्च होने वाला पानी हो या फिर रेलवे में तालाबंदी के दौरान यह पानी बचा रहा। जो उद्योग प्रतिदिन लाखों लीटर भू-जल खींचकर उपयोग में लाते थे, तालाबंदी से ऐसा नहीं हो पाया।

इस दौरान प्रति व्यक्ति कम उपभोग के चलते भी पानी की बचत हुई, लेकिन ज्यों-ज्यों तालाबंदी को खोला गया वैसे ही भू-जल का उपभोग पहले ही तरह ही धीरे-धीरे रफ़्तार पकड़ रहा है। यह पहले से ही स्पष्ट भी था कि तालाबंदी में भू-जल की बचत होना स्थाई नहीं है लेकिन इसने हमें यह सोचने पर अवश्य मजबूर किया है कि हमारे उपभोक्तावाद से भू-जल पर अनावश्यक दबाव पड़ रहा है।

जल शक्ति मंत्रालय, भारत सरकार के नेशनल कमीशन फॉर इनटेगरेटिड वॉटर रिसोर्सिस डेवलेपमेंट प्लान व सेंटर फॉर साइंस एण्ड एन्वायरन्मेंट के अध्ययन के अनुसार उधोग व उर्जा क्षेत्र में कुल भू-जल की मांग आज के करीब 7 प्रतिशत के मुकाबले वर्ष 2025 तक 8.5 प्रतिशत हो जाएगी जो वर्ष 2050 तक बढ़कर करीब 10.1 प्रतिशत हो जाएगी।

ऐसे में सहज ही समझा जा सकता है कि भविष्य के लिए भू-जल बचाना कितना आवश्यक है? ऐसे में फिफ्की की वह रिपोर्ट भी चिंता में डालने वाली है कि उद्योग पानी की कमी से जूझ रहे हैं। गौरतलब है कि कृषि क्षेत्र में भू-जल की मांग वर्ष 2010 के 77.3 प्रतिशत के मुकाबले वर्ष 2050 तक घटकर 70.9 प्रतिशत ही रह जाएगी अर्थात भविष्य में जहां उधोग व ऊर्जा में पानी की मांग बढ़ेगी व वहीं सिंचाई में घटेगी।

पिछले पांच माह में दिल्ली व उसके निकट के राज्यों में करीब एक दर्जन बार भूकंप के हल्के व कम समय के लिए झटके महसूस किए जा चुके हैं। यह भू-जल दोहन का स्पष्ट संकेत है क्योंकि ज्यों-ज्यों जमीन के नीचे का पानी सूंता जा रहा है उससे नीचे के जल भंडार रीते हो रहे हैं। भू-जल के भंडारों के खाली होने के कारण जमीन के नीचे की टेक्टोनिक प्लेटस धीरे-धीरे खिसक रही हैं। अगर हालात ये ही रहे तो निकट भविष्य में बड़े भूकंप की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है।

भारत में भू-जल उपयोग के लिए कठोर कानूनों की आवश्यकता है, क्योंकि यहां सभी कुछ़ बड़े शहरों को छोड़ दें तो तमाम देश में साफ-पीने वाला पानी ही प्रत्येक उपयोग में लाया जाता है। उद्योग से लेकर कृषि तक तथा पीने से लेकर फ्लश तक साफ पीने वाला पानी ही इस्तेमाल होता है। हमें अगर भू-जल को संरक्षित रखना है तो इस आदत को बदलना होगा।

हमें सिंचाई, उद्योग व कुछ घरेलू कार्यों (पौचा लगाना, गाड़ी धोना, गमलों में व शौचालय आदि) में कस्बों व शहरों से निकलने वाले सीवेज को शोधित करके इस्तेमाल करना होगा तथा उद्योगों को पानी के पुन: इस्तेमाल के लिए मजबूर करना होगा। भू-जल बचाने व संरक्षित करने में प्रत्येक व्यक्ति को उपभोक्तावाद में कमी करनी होगी।

हम जो कुछ भी उपयोग करते हैं उसकी समझ बनानी होगी कि वह कितने पानी के इस्तेमाल से बनी है और क्या उसके बगैर हमारा जीवन चल सकता है? अगर यह समझ देश बना ले और भू-जल दोहन के लिए उपयुक्त व कठोर कानून अमल में आ जाएं तो भविष्य पानीदार संभव है। (लेखक भारतीय नदी परिषद के मुख्य कार्यकारी अधिकारी हैं)


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