Friday, April 26, 2024
- Advertisement -
Homeसंवादसेहतबीजों के औषधीय प्रयोग

बीजों के औषधीय प्रयोग

- Advertisement -

Sehat 3


जामुन की गुठली: जामुन जामुन के अंदर एक बीज (गुठली) होती है। गुठली के अंदर का मज्जा (गिरी) के चूर्ण का उपयोग औषधि कार्य हेतु किया जाता है। जामुन के बीच में जंबूलिन नामक ग्लूकोसाइड, गैलिक एसिड, क्लोरोफिल, वसा, राल एवं एल्ब्युमिन आदि तत्व पाए जाते हैं। जामुन की गुठली में मधुमेह (डायबिटीज) निवारक क्रिया ग्लूकोसाइड के ही कारण होती है। गुठली का चूर्ण मधुमेह, उदक मेहनाशक, रक्तप्रदर एवं रक्तातिसार शामक होता है। जामुन की गुठली का चूर्ण, मेथी का चूर्ण, तेजपत्ता का चूर्ण तथा बिल्वपत्र के चूर्ण को समान मात्रा में लेकर 1-1 चम्मच की मात्रा में दिन में दो बार जल के साथ लेते रहने पर मधुमेह में काफी लाभ होता है।

आम की गुठली: आम को फलों का राजा कहा जाता है। इस फल के बीच में गुठली होती है।
गुठली के गिरी (बीज मज्जा) का प्रयोग औषधि कार्य हेतु किया जाता है। इसका चूर्ण बनाकर 1 से 3 ग्राम तक की मात्र का प्रयोग किया जाता है। आम में टैनिक एसिड की मात्रा पायी जाती है। बीज मज्जा (गिरी का चूर्ण) कफनाशक, पित्तशामक है।

इमली बीज: इसके वृक्ष बगीचों एवं सड़कों के किनारे पाये जाते हैं। इसके वृक्ष लंबे होते हैं। इसे इमली, आॅबली, टेमारिक आदि नामों से भी जाना जाता है। इसके कच्चे फल (फली) खट्टे होते हैं। पकने पर इसकी फलियां लाल हो जाती हैं। इसके अंदर गूदेदार मध्यभित्ति होती हैं। इस फली के अंदर अनेक बीज होते हैं जिन्हें चीयां भी कहा जाता है। इमली के बीज द्विदल एवं कड़े होते हैं। इमली के बीज को पानी में भिगोकर कुछ दिनों तक रखकर उसे भूनकर छिलका उतार लिया जाता है। इसी गिरी का चूर्ण बनाकर औषधि हेतु प्रयोग किया जाता है। इस चूर्ण का उपयोग प्रमेहनाश हेतु काफी किया जाता है। यह संग्राही, तथा वीर्य को शुद्ध करने वाला भी होता है।

इलायची के बीज: इसके वृक्ष चार फुट से 9 फुट लंबे होते हैं। यह दो प्रकार की छोटी इलायची तथा बड़ी इलायची के रूप में पायी जाती है। औषधि कार्य के लिए छोटी इलायची के बीजों का प्रयोग किया जाता है। इलायची कच्चेपन पर हरे रंग का तथा पकने के बाद पीला तथा सूखने पर सफेद हो जाता है। फल के अंदर अनेक बीज भरे होते हैं। इलायची के बीजों में टपीर्नीन एवं टर्पिनिओल नामक उडम्शील तेल पाए जाते हैं। इसके अतिरिक्त इसमें श्वेतासार (स्टार्च) एवं पीत रंजकत्व आदि भी पाये जाते हैं। इन बीजों का उपयोग मुख दुर्गन्ध नाश, उल्टी रोकने, प्यास बुझाने, श्वास-कास को हरने आदि में किया जाता है। इस बीज का अर्क भी निकाला जाता है जिसका उपयोग शर्बत आदि के लिए किया जाता है।

इसबगोल के बीज: इसका मूल उत्पत्ति स्थान फारस है, किंतु यह भारत के भी अनेक प्रान्तों में उपजता है। इसका बीज घोड़े के कान जैसा होता है। इसके क्षुप एक वर्षीय होते हैं तथा तीन फुट तक ऊंचे होते हैं। इसकी पत्तियां धान की पत्तियों के समान देखने में लगती हैं। इसबगोल का फल 1/3 इंच लंबा, तथा सामान्य स्फोटी अर्थात कैप्सूल की भांति होता है जिसका ऊपरी भाग आधे टोप की तरह खुला होता है।

इन बीजों में काफी मात्रा में म्युसिलेज एल्ब्युमिन तत्व, फाइटॉस्टेरोल तथा अक्युबिन नामक ग्लूकोसाइड पाया जाता है। इसी बीजों से इसबगोल की भूसी तैयार की जाती है। इसका प्रयोग अतिसार, दौर्बल्य नाश, कब्ज निवारण आदि के लिए किया जाता है। इसका सेवन रात में सोने से पहले करना चाहिए।

                                                                                                  आनंद कुमार अनंत


janwani address 8

What’s your Reaction?
+1
0
+1
2
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments