भ्रमण करते हुए एक बार भगवान बुद्ध ने एक नदी के तट पर डेरा डाला। वह जीवन के विविध आयामों पर रोज व्याख्यान देने लगे, जिन्हें सुनने दूर-दूर से लोग आने लगे। एक भक्त बिना नागा उनका व्याख्यान सुनता था। परंतु उस व्यक्ति ने अपने अंदर कोई बदलाव नहीं पाया। एक दिन उस व्यक्ति ने बुद्ध से कहा, ‘भगवन! मैं लंबे समय से अच्छा इंसान बनने के आपके प्रवचन सुनता आया हूं, परंतु इन बातों से मुझमें कोई बदलाव नहीं आ रहा है।’
बुद्ध ने उस व्यक्ति सिर पर हाथ फेरा और बोले, ‘वत्स, तुम्हारा गांव इस स्थान से कितनी दूर है?’ उसने कहा, ‘करीब दस कोस दूर।’ बुद्ध ने पुन: प्रश्न किया, ‘तुम अपने गांव कैसे जाते हो?’ वह व्यक्ति बोला, ‘गुरुदेव, पैदल जाता हूं।’ ‘क्या ऐसा संभव है की तुम यहां बैठे-बैठे अपने गांव पहुंच जाओ?’ उस व्यक्ति ने झुंझलाकर उत्तर दिया, ‘ऐसा बिलकुल संभव नहीं है।’ बुद्ध ने कहा, ‘तुम्हें तुम्हारे प्रश्न का उत्तर मिल गया होगा।
यदि तुम्हें अपने गांव का रास्ता पता है, उसकी जानकारी भी है, परंतु इस जानकारी को व्यवहार में लाए बिना तथा पैदल चले बिना तुम वहां नहीं पहुंच सकते। इसी प्रकार यदि तुम्हारे पास ज्ञान है और तुम इसको अपने जीवन में अमल में नहीं लाते हो, तो तुम अपने आप को बेहतर इंसान नहीं बना सकते।
इसके लिए तुम्हें निरंतर प्रयास करने होंगे तथा सीखी गई बातों को जीवन की विभिन्न स्थितियों में निरंतरता के साथ प्रयोग में लाना होगा। वास्तव में तभी तुम अपने जीवन में परिवर्तन अनुभूत कर सकते हो।’ उसे बुद्ध की बात अच्छी तरह समझ में आ गई।