Sunday, September 8, 2024
- Advertisement -
HomeUttar Pradesh NewsMeerutकीर्तिवंत किरठल: ऐसे गांव की दास्तान जहां से निकले अनमोल हीरे

कीर्तिवंत किरठल: ऐसे गांव की दास्तान जहां से निकले अनमोल हीरे

- Advertisement -
  • 1100 वर्ष पूर्व बसे बागपत के किरठल गांव ने दिए दो सांसद, चार विधायक
  • ख्याति प्राप्त कवि, इंजीनियर, वैज्ञानिक और अफसर बने यहां के बेटे-बेटियां
  • मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु डा. लक्ष्मीकांत शास्त्री भी थे किरठलवासी
  • गांव की गौरवगाथा पर रिटायर्ड मृदा विज्ञानी डा. यशपाल सिंह ने गांव के 200 वर्ष के इतिहास पर लिखी पुस्तक

जनवाणी संवाददाता |

मेरठ: बागपत के किरठल गांव की मिट्टी में कई ऐसे अनमोल हीरे जन्मे हैं, जिनकी कीर्ति नई पीढ़ी के लिए मिसाल है। करीब 1100 वर्ष पूर्व बसे 14 हजार की आबादी वाले किरठल ने चार विधायक, दो सांसद, आईएसएस, इंजीनियर, डॉक्टर, प्रख्यात वकील, शिक्षक और कवि दिए हैं। पंतनगर कृषि विश्वविद्यालय में मृदा विज्ञानी रहे डॉ. यशपाल सिंह ने दो वर्ष तक निरंतर शोध और अध्ययन के बाद कीर्तिवंत किरठल शीर्षक से लिखी पुस्तक में गांव की वैभवशाली सांस्कृतिक विरासत का उल्लेख किया है। यशपाल इन दिनों आसपास के गांवों पर लेखन के लिए अपने जैसे लोग तलाश रहे हैं।

14 23

आठ मई 1920 को किरठल में आर्य उपदेशक विद्यालय की स्थापना की गई थी। इसी संस्था के ब्रहाचारी और मूलरूप से बागपत के ककौर कलां गांव निवासी रघुवीर सिंह शास्त्री 1967 से 1970 तक बागपत लोकसभा सीट से सांसद रहे। संसद में उन्होंने शपथ संस्कृत में ही ली थी। शास्त्री वर्ष 1971 से 1974 तक गुरुकुल कांगडी विश्वविद्यालय हरिद्वार के कुलपति और बाद में कुलाधिपति भी रहे। उनके बेटे और पूर्व केंद्रीय मंत्री सोमपाल शास्त्री भी किरठल में ही पढ़े।

सोमपाल शास्त्री ने 1998 में अजेय समझे जाने वाली बागपत सीट पर चौधरी अजित सिंह को हराया और केंद्र की अटल बिहारी वाजपेयी सरकार में मंत्री बने। वह योजना आयोग के सदस्य और किसान आयोग के अध्यक्ष भी रहे। इसी गांव के चौधरी नरेंद्र सिंह एडवोकेट मेरठ के प्रख्यात अधिवक्ता हैं। जब चौधरी चरण सिंह ने कांग्रेस छोड़ अलग पार्टी बनाई तो नरेंद्र सिंह ने बिना फीस लिए उनकी पार्टी के मुकदमे लड़े। चौधरी साहब केंद्र की सियासत में गए तो उन्होंने अपनी सीट छपरौली से नरेंद्र सिंह को ही विधानसभा भेजा।

15 22

वह छपरौली से पांच बार विधायक चुने गए। किरठल में जन्मे गजेन्द्र सिंह मुन्ना भी छपरौली विधानसभा सीट से 1996 में विधायक चुने गए। गांव की ही पट्टी अमराण में जन्मे सत्येंद्र कुमार जैन ने अन्ना आंदोलन में सक्रिय भूमिका निभाई और दिल्ली की शकूर बस्ती से लगातार तीन बार विधायक चुने गए और केजरीवाल सरकार में मंत्री भी बने। किरठल के ही महेंद्र जैन 1991 में जनता दल के टिकट पर बागपत सीट से विधायक चुने गए। प्रख्यात कवि बलबीर सिंह करुण भी किरठल के ही रहने वाले हैं। साहित्य के क्षेत्र में वह बड़ा नाम हैं। उनके बेटे विनीत चौहान ने भी वीर रस के कवि के रूप में ख्याति पाई ।

कबीरपंथ और नाथ संप्रदाय की भी जड़ें

किरठल जनसंख्या और क्षेत्रफल की दृष्टि से आसपास के गांवों से बड़ा है। पूर्व विधायक चौधरी नरेंद्र सिंह एडवोकेट कहते हैं कि किरठल का बड़ा ऐतिहासिक और धार्मिक महत्व है। डा. यशपाल सिंह बताते हैं कि काशी के बाद कबीर पंथ की पवित्र गुरु गद्दी किरठल में ही स्थापित हुई। कोटद्वार में यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के गुरु रहे स्व. डा. लक्ष्मीकांत शास्त्री किरठल के ही रहने वाले थे और वह जन्म से ही नाथ संप्रदाय के अनुयायी थे।

दिगंबर जैन मंदिर है धरोहर

125 वर्ष पुराना है दिगंबर जैन मंदिर किरठल में 125 वर्ष पुराना जैन मंदिर है। जैन धर्म में वर्णित चार प्रमुख तीर्थंकरों की प्राचीनतम प्रतिमाएं यहां विराजमान हैं। गांव की बीजलाण पट्टी में श्वेतांबर अनुयायियों के लिए एक जैन स्थानक भी है।

11 हवेलियां पानीपत के युद्ध से भी नाता

किरठल में मुगल और ब्रिटिश कालीन प्रमुख 11 हवेलियों का अपना इतिहास है। पानीपत के युद्ध में किरठल के ब्राह्मणों ने मराठों को रसद पहुंचाई थी। मराठों से पारितोषिक में मिले धन से पंडित प्रताप के पूर्वजों ने गांव में एक विशाल हवेली बनवाई। इस ब्राहम्ण परिवार की संतति कर्नल धीरेश कुमार शर्मा, लेफ्टिनेंट रमाकांत शर्मा आदि ने पाकिस्तान के साथ हुए युद्ध में बड़ी भूमिका निभाई है। इस परिवार के सुखबीर सिंह मुखिया गांव के प्रधान भी बने।

पट्टी के नाम हैं रोचक

गांव सात पट्टी में बंटा है। इनके नाम आजलाण, बीजलाण, अमराण, सूंडियाण, बागडाण, मेघाण, ढींगराण हैं।

1857 की जंग में रही बड़ी भूमिका

किरठल गांव ने 1857 की जंग में बड़ी भूमिका निभाई। गांव के ही चौधरी जिले सिंह हाडी और चौधरी बुद्धराम सूंडियाण आदि ने ब्रिटिश फौज में भर्ती होकर प्रशिक्षण लिया तथा नेताजी सुभाष चंद्र बोस के आह्वान पर आजाद हिंद फौज में नेतृत्व किया। चौधरी कुंदन सिंह अमराण, जहान सिंह मेघाण, रणधीर सिंह चौधराण, मंगत सिंह, हरनाम सिंह, सेठ रामगोपाल बोहरा, रणजीत सिंह जोशिया, किशनचंद अमराण ने गांधीजी के असहयोग आंदोलन और सविनय अवज्ञा आंदोलन, दांडी यात्रा में भागीदारी की।

1904 में बनी थी ग्राम अदालत, मामराज सिंह थे मजिस्ट्रेट

डा. यशपाल सिंह अपनी पुस्तक में लिखते हैं कि 1904 में किरठल में एक ग्राम अदालत स्थापित की गई। इसके लिए मामराज सिंह को आॅनरेरी मजिस्ट्रेट नियुक्त किया गया।

अंग भाई गांवों में नहीं होतीं शादियां

किरठल के लाकड़ा चौहान गोत्र के लोग पंवार गोत्र के ककड़ीपुर, एलम, नाला, भारसी और भनेड़ा के साथ भाईचारा मानते हैं। इनके बीच में शादियां नहीं होतीं। असारा, बाछौड़, सोंटी, अथाई, गुरुकुल नारसन, हुसैनपुर बुपाड़ा में भी किरठल से निकले लोग बसे हैं।

प्रधानी के लिए रही तनानती, खूनी रंजिश का दाग भी

किरठल गांव में ग्राम प्रधान की कुर्सी के लिए शुरुआत से ही तनातनी रही। देश में पंचायती राज व्यवस्था लागू होने के बाद सर्वसम्मति से सूरजमल मास्टर को ग्राम प्रधान चुना गया। इस पर प्रीतम सिंह ने वाद दायर किया कि सूरजमल का नाम वोटर लिस्ट में नहीं है। इसके बाद यहां सर्वसम्मति से श्याम सिंह शास्त्री को प्रधान बनाया गया।

प्रीतम सिंह ने आपत्ति दर्ज कराई तो शास्त्री ने त्याग पत्र दे दिया। गांव के ही नरेंद्र सिंह और धर्मेंद्र के परिवारों के बीच खूनी रंजिश भी चली। इससे किरठल की साख पर दाग भी लगा। हालांकि इस हिस्से का जिक्र कीर्तिवंत किरठल में नहीं है।

What’s your Reaction?
+1
0
+1
2
+1
1
+1
0
+1
0
+1
0
+1
0
- Advertisement -

Recent Comments