Sunday, September 8, 2024
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युवाओं को चाहिए रोजगार

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TARKESHWARदेश के पाचं राज्यों में विधानसभा चुनाव जारी हैं। आगामी 3 दिसंबर को चुनाव के नतीजे आएंगे। विधानसभा चुनावों में सभी राजनीतिक दलों ने वोटरों को अपने पक्ष में करने के लिए लुभावने वायदे और गारंटियां दी। लेकिन अगर जनता के हवाले से बात की जाए तो युवा वोटरों के एजेण्डे में नौकरी की मांग सबसे ऊपर रही। चुनाव रैलियों और प्रचार के समय इन पांच राज्यों में युवा वोटरों के बीच रोजगार के मुद्दे की खूब गंूज सुनाई दी। सिर्फ इसी आधार पर राजनीतिक दलों को कितना जनादेश प्राप्त होगा, यह कहना अनिश्चित है, लेकिन दलों के घोषणा-पत्रों में सरकारी नौकरियों को लेकर आश्वासन प्रमुख रूप से बांटे गए हैं। भाजपा या कांग्रेस के अलावा, मिजोरम की क्षेत्रीय पार्टियों को भी वायदा करना पड़ा है कि उनकी सरकार युवाओं के लिए इतनी सरकारी नौकरियां और रोजगार के अवसर पैदा करेगी। रोजगार के क्षेत्र में बड़े घोटाले सामने आ रहे हैं कि किस सरकार के दौरान कितने पेपर लीक कराए गए। अव्वल तो सरकारी नौकरियों में भर्ती की परीक्षाएं लटकाई जाती रही हैं। यदि परीक्षा हो गई, तो उनके नतीजे अनिश्चित अंधेरों में डूब जाते हैं। यदि परीक्षाओं के बाद सफल चेहरों को नियुक्ति-पत्र मिल भी गए, तो ज्वाइनिंग में आनाकानी की जाती रही है। अंततरू अदालतों में धक्के खाने पड़ते हैं और वहां भी सब कुछ अनिश्चित है। इन धांधलियों और घपलों पर युवा मतदाता सरकारी नौकरियों को लेकर पूरी तरह आश्वस्त कैसे हो सकता है?

घोषित राजनीतिक आश्वासनों पर जनादेश दिए जाएंगे, सरकारें बनेंगी, उसके बाद नौकरी या रोजगार का वायदा, समयबद्ध और चरणबद्ध तरीके से, पूरा नहीं किया गया, तो युवा वोटर क्या कर सकते हैं? जनादेश तो पांच साल के लिए होता है। पांच साल के बाद राजनीतिक परिदृश्य और समीकरण क्या होंगे, पार्टियां इन चिंताओं में दुबली नहीं हुआ करतीं। अलबत्ता युवाओं के सामने आंदोलन का रास्ता जरूर खुला है।उनसे पूर्ण न्याय कब मिला है? बहरहाल तेलंगाना में कांग्रेस ने ह्यजॉब कलैंडरह्ण तय करने का वायदा किया है। भाजपा ने तेलंगाना लोक सेवा आयोग की परीक्षाओं के मद्देनजर पारदर्शी और समयबद्ध समाधान देने का वायदा किया है। दोनों दलों को तेलंगाना में जनादेश मिलने के आसार नहीं हैं।
राजस्थान में उन युवाओं को समर्थन दिया जा रहा है, जिन्होंने सरकारी नौकरियों में भर्ती की निरंतर और सिलसिलेवार देरी के खिलाफ आवाज उठाई है। तेलंगाना और राजस्थान में युवा बेरोजगारी दर क्रमशरू 15.1 फीसदी और 12.5 फीसदी है, जो देश भर में सर्वाधिक हैं। कमोबेश बेरोजगारी की राष्ट्रीय दर करीब 8 फीसदी से तो ज्यादा है। राजस्थान लोक सेवा आयोग की परीक्षाएं विवादों और घोटालों में संलिप्त रही हैं। लगातार पेपर लीक, परीक्षा परिणामों में धांधलियों, कानूनी पचड़ों के कारण बीते चार साल में 8 परीक्षाएं रद्द करनी पड़ी हैं। मध्यप्रदेश में आज भी ह्यव्यापम घोटालेह्ण की गूंज सुनाई देती है।

कोविड-19 महामारी के दौरान भारत में शहरी बेरोजगारी दर अप्रैल से जून 2020 की तिमाही में 20.9 फीसदी पर पहुंच गई थी। तब से बेरोजगारी दर तो कम हुई है लेकिन नौकरियां कम ही उपलब्ध हैं। अर्थशास्त्री कहते हैं कि नौकरी खोजने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है। खासकर युवा आबादी कम वेतन वाला कच्चा काम खोज रहे हैं या फिर अपना कोई छोटा-मोटा काम कर रहे हैं जिस पर भरोसा नहीं किया जा सकता। यह हालात तब हैं जबकि देश की विकास दर दुनिया में सबसे ज्यादा 6.5 फीसदी रहने का अनुमान लगाया जा रहा है।

आंकड़ों के लिहाज से बात की जाए तो देश में 29 महीने बाद 15 साल से अधिक उम्र के लोगों के बीच बेरोजगारी दर 10 फीसदी से ज्यादा हो गई है। कोविड-19 के बाद यह दर सबसे ज्यादा है। इससे पहले मई 2021 में यह दर 11.84फीसदी दर्ज की गई थी। ताजा दर में अप्रत्याशित बढ़ोतरी गांवों में बेरोजगारों की संख्या बढ़ने से हुई है।दरअसल, ग्रामीण इलाकों में मनरेगा के तहत दिया जाने वाला रोजगार एक महीने में रोजगार 28.16फीसदीघटा है। योजना के तहत सितंबर में 19.53 करोड़ लोगों को रोजगार मिला था। अक्टूबर में संख्या घटकर 14.03 करोड़ रह गई। वहीं, अगर शहरों में बेरोजगारी की बात करें तो यहां सितंबर में बेरोजगारी दर 8.9फीसदी थी, जो अक्टूबर में घटकर 8.4 फीसदी रह गई।

सीएमआईई की रिपोर्ट के मुताबिक, अक्टूबर में देश में 97 लाख नए लोग काम तलाश रहे थे। इनमें 81 लाख नए बेरोजगार ग्रामीण क्षेत्रों से थे। ग्रामीण श्रमशक्ति की बात करें तो अक्टूबर में नए और पुराने 1.52 करोड़ मजदूर जुड़े। इससे कुल बेरोजगार ग्रामीण मजदूरों की संख्या एक महीने में 1.93 करोड़ से बढ़कर 3.45 करोड़ हो गई।बेरोजगारी की यह स्थिति इसलिए चैंकाने वाली है क्योंकि पिछले पांच सालों में सितंबर से अक्टूबर के बीच औसतन बेरोजगार 50 लाख ही बढ़े थे। ग्रामीण क्षेत्रों में मजदूरों को छोटे व्यापारियों के यहां दिहाड़ी और वेतनभोगी के रूप में रोजगार मिलता है। अक्टूबर के आंकड़े बताते हैं कि छोटी दुकानों में दिहाड़ी मजदूरों की संख्या में 1.03 करोड़ की कमी आई। वेतनभोगी मजदूरों की संख्या भी 46 लाख घटी। खेतिहर मजदूरों की संख्या में कोई बढ़ोतरी नहीं हुई।

बेरोजगारी को सरकार की नजर से देखें तो उसके पीरियोडिक लेबर फोर्स सर्वे डेटा के मुताबिक, 2017-18 में बेरोजगारी दर 45 साल के सबसे ऊपरी लेवल 6.1 फीसदी तक पहुंच गई थी। यानी, उस साल हर 10,000 वर्कर में 610 बेरोजगार थे, लेकिन अगले साल यानी 2018-19 में उनका आंकड़ा घटकर 5.8फीसदी(580 प्रति 10,000) पर आ गया। आईएलओ के डेटाबेस के मुताबिक, 2008 में हर 10,000 वर्कर में 536 बेरोजगार थे, जिनकी संख्या 2010 में 565 पर पहुंच गई। लेकिन, 2013 से 2019 के बीच इसमें लगातार गिरावट का रुझान बना रहा। 2013 में बेरोजगारी 567 वर्कर प्रति 10,000 से 2019 में 527 पर आ गई लेकिन 2020 में बेरोजगारों की संख्या तेज उछाल के साथ 711 पर पहुंच गई।

पीरियॉडिक लेबर फोर्स सर्वे 2022-23 के मुताबिक, मध्य प्रदेश में युवा बेरोजगारी की दर चुनावी राज्यों में सबसे कम 4.4 फीसदी है। तेलंगाना, राजस्थान और मिजोरम (11.9 फीसदी) में युवा बेरोजगारी की दर राष्ट्रीय दर से अधिक है। छत्तीसगढ़ में यह दर 7.1 फीसदी है। बेशक सरकारी नौकरियों और रोजगार के बेहतर अवसरों के आश्वासन सभी राजनीतिक दलों ने बांटे हैं, लेकिन युवा मतदाताओं की चिंताओं, प्रतिबद्धताओं और उनके सरोकारों पर ‘राजनीति’ ज्यादा की जा रही है। महिलाओं में बेरोजगारी की दर अधिक और गंभीर है। बहरहाल ये आंकड़े और संकेत चिंताजनक हैं। राजनीतिक दलों के कोरी बयानबाजी और आश्वासन देने की प्रवृत्ति से ऊपर उठकर बेरोजगारी की गंभीर समस्या के ठोस समाधान की दिषा में काम करना चाहिए।


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